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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ ईशानेन्द्र का कोप
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द्वारा उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहने लगे कि "स्वयमेव तपस्वी का वेष : पहन कर 'प्राणामा' प्रव्रज्या अंगीकार करनेवाला यह तामली बाल-तपस्वी हमारे सामन क्या है ? तथा ईशान देवलोक में उत्पन्न हुआ देवेन्द्र देवराज ईशान भी हमारे सामने क्या है ?" इस प्रकार कह कर उस तामली बाल तपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा, खिसा, गर्हा, अपमान, तर्जना, ताड़ना, कदर्थना और भर्त्सना की और अपनी इच्छानुसार आडा टेढ़ा घसीटा । ऐसा करके उसके शरीर को एकान्त में डाल दिया और जिस दिशा से आये थे उसी दिशा में वापिस चले गये।
ईशानेन्द्र का कोप
तएणं ते ईसाणकप्पवासी बहवे वेमाणिमा देवा य देवीओ य बलिवचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलिजमाणं, प्रिंदिजमाणं जाब-आकड्ढ-विकडिंढ कीरमाणं पासंति, पासित्ता आसुस्त्ता,जावमिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाणे देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति, करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं, विजएणं वद्धावेंति, एवं वयासीः-एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाणुप्पिए कालगए जाणित्ता ईसाणे कप्पे इंदत्ताए उववण्णे पासिता आसुरुत्ता, जाव-एगते एउंति, जामेव दिसि पाउब्भूया
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