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भगवती सूत्र-श ३ उ. १ तामली के शव की कदर्थना
उग्घोसेमाणा उग्धोसेमाणा एवं वयासी-केस णं भो ! से तामली बालतवस्सी सयंगहियलिंगे पाणामाए पध्वजाए पवइए ? केस णं से ईसाणे कप्पे ईसाणे देविंद देवराया ति कटु तामलिरस बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलंति, जिंदंति, खिसंति, गरिहंति, अवमण्णंति, तजति, तालेति, परिवहति, पव्वहेंति, आकड्ढ-विकइिंढ करेंति, होलेता जाव-आकड्ढ-विकडिंढ-करेत्ता एगंते एडंति, जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
कठिन शब्दार्थ-आसुरुत्ता-क्रोधित हुए, कुविया-कुपित हुए, चंडिक्किया-भयंकर आकृति बनाई. मिसिमिसेमाणा-मिसमिसायमान-दाँत पीसते हुए, सुंबेण बंधइ-डोरी से बांधा, उहंति-धुंका, आकविकड्डि करेमाणा-घसीटते हुए,उग्घोसेमाणे-घोषणा करते हुए, सयंगहिलिगे-बिना गुरु के स्वयं लिंग ग्रहण करनेवाला, अवमण्णंति-अपमान करते हैं, एगते एडंति-एकान्त में डालदिया।
भावार्थ-इसके बाद बलिचंचा राजधानी में रहनेवाले बहुत से असुरकुमार देव और देवियों ने जब यह जाना कि तामली बाल-तपस्वी काल धर्म को प्राप्त हो गया है और ईशान देवलोक में देवेन्द्र रूप से उत्पन्न हुआ है, तब उनको बड़ा क्रोध एवं कोप उत्पन्न हुआ। क्रोध के वश अत्यन्त कुपित हुए। तत्पश्चात वे सब बलिचंचा राजधानी के बीचोबीच निकले यावत् उत्कृष्ट देव गति के द्वारा इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की ताम्रलिप्ति नगरी के बाहर जहाँ तामली बाल-तपस्वी का मृत शरीर था वहाँ आये। फिर तामली बाल-तपस्वी के मत शरीर के बाएं पैर को रस्सी से बांधा । और उसके मुख में तीन बार
की फिरताम्रलिप्ती नगरी के सिंघाडे के आकार के तीन मार्गों में, चार मार्गों के चौक में (चतुर्मुख मार्गों में) एवं महा मार्गों में अर्थात् ताम्रलिप्ती नगरी के . सभी प्रकार के मार्गों में उसके मत शरीर को घसीटने लगे। और महा ध्वनि
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