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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ बलिचंचा के देवों का आकर्षण और निवेदन को पूछकर, ताम्रलिप्ती नगरी के बीचोबीच से निकल कर, पादुका (खड़ाऊ ) तथा कुण्डी आदि उपकरणों को और लकडी के पात्र को एकांत में डालकर ताम्रलिप्ती नगरी के उत्तर पूर्व दिशा भाग में अर्थात् ईशान कोण में 'निर्वर्तनिक' ( एक परिमित क्षेत्र अथवा अपने शरीर परिमाण जगह ) मण्डल को साफ करके संलेखना तप के द्वारा आत्मा को सेवित कर आहार पानी का सर्वथा त्याग करके पादपोपगमन संथारा करूँ एवं मृत्यु की चाहना नहीं करता हुआ शान्त चित्त से स्थिर रहूं | यह मेरे लिये श्रेयस्कर है । ऐसा विचार कर यावत् सूर्योदय होने पर यावत् पूर्व कथितानुसार पूछकर उस तामली बाल-तपस्वी ने अपने उपकरणों को एकांत में रखकर यावत् आहार- पानी का त्याग करके पादपोपगमन नाम का अनशन कर दिया । बलिचचा के देवों का आकर्षण और निवेदन तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहाणी आणंदा, अपुरोहिया या वि होत्था, तरणं ते बलिचंचा रायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सि ओहिणा आभोएंति, आभोत्ता अण्णमण्णं सदावेंति, अण्णमण्णं सदावेत्ता एवं वयासि - एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अंनिंदा. अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा, इंदाहिट्टिया, इंदाहीणकज्जा, अयं च देवाणुप्पिया ! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए णयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणानूसणाहूसिए, भत्तपाणपडियाइक्खिए, Jain Education International ५८१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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