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________________ ५८२ . भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ बलिचंचा के देवों का आकर्षण और निवेदन पाओवगमणं णिवण्णे; तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे तामलिं बालतवस्सिं बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमढे पडिसुणेति, पडिसुणिता बलिचंचारायहाणीए. मझमझेणं णिगच्छंति जेणेव रुयगिंदे उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता वेउब्वियसमुग्धाएणं समोहणंति, जाव उत्तरवेउब्बियाई रूवाई विउव्वंति, ताए उकिट्ठाए, तुरियाए, चवलाए, चंडाए, जहणाए, छेयाए, सीहाए, सिग्याए, दिवाए, उधुयाए, देवगईए तिरियं असंखेजाणं दीवसमुदाणं मझमझेणं जेणेव जंबूदीवे दीवे, जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती णयरी, जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता तामलिस्स बालतवस्सिस्स. उप्पिं, सपक्खि, सपडिदिसि ठिचा दिव्वं देविइिंढ, दिव्वं देवज्जुई, दिव्वं देवाणुभाग, दिव्वं बत्तीसविहं गटविहं उवदंसेंति, तामलिं बालतवस्सि तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेंति, वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता। कठिन शब्दार्थ-अणिन्दा-इन्द्र रहित, ओहिणा आभोएंति-अवधिज्ञान से देखा, वत्यव्वया-बसनेवाले-रहनेवाले, इंदाहिटिया–इन्द्राधिष्ठित, उप्पि- ऊपर, सपक्खिसपक्ष--सामने, सपडिविसि-सप्रतिदिश--ठीक उसी दिशा में, ठिच्चा-खड़े रह कर, ठितिपकप्पं पकरावेत्तए--स्थिति करावें (संकल्प करावें) तुरियाए--त्वरित, जहणाए-- जयवाली, छयाए-निपुण, उखुयाए--उद्धृत, गतिविशेष, उवयंसेइ--दिखाया। भावार्थ-उस काल उस समय में बलिचंचा (उत्सर विशा के असुरेन्द्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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