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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ५ कृष्णराजि
दिशा की दो आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुरंश (चतुष्कोण ) है। इसी प्रकार उत्तर और दक्षिण दिशा को दो आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ भी चतुष्कोण हैं।
कृष्णराजियों के अकिार को बतलाने वाली गाथा का अर्थ इस प्रकार है-पूर्व और पश्चिम को कृष्णराजि षटकोण है । दक्षिण और उत्तर की बाह्य कृष्णराजि त्रिकोण है । शेष सब आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं।
२२ प्रश्न-कण्हराईओ णं भंते ! केवइयं आयामेणं, केवइयं विस्वभेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ ? ___२२ उत्तर-गोयमा ! असंखेजाई जोयणसहस्साई आयामेणं, संग्वेजाइं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, असंखेनाइं जोयणसहस्साई परिक्वेवेणं पण्णत्ताओ।
२३ प्रश्न-कण्हराईओ णं भंते ! केमहालियाओ पण्णत्ताओ ?
२३ उत्तर-गोयमा ! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे, जाव-अद्धमासं वीईवएज्जा, अत्थेगइयं कण्हराई वीईवएजा, अत्थेगइयं कण्हराइं णो वीईवएजा, एमहालियाओ णं गोयमा ! कण्हराईओ पण्णताओ।
२४ प्रश्न-अत्थि णं भंते ! कण्हराईसु गेहा इ वा, गेहावणा इवा ?
२४ उत्तर-णो इणटे समटे । २५ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! कण्हराईमु गामा इ वा० ?
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