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भगवती सूत्र--श. ६ उ. ५ कृष्णराजि
कण्हराई पुट्ठा; दो पुरथिम-पचत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराईओ छलंसाओ, दो उत्तर-दाहिणबाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ, दो पुरस्थिम-पचत्थिमाओ अभिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ, दो उत्तर-दाहिणाओ अभिंतराओ कण्हराईओ चउरंसाओ।
-पुव्वाऽवरा छलंसा तंसा पुण दाहिणुत्तरा बज्झा,
अभिंतर चउरंसा सव्वा वि य कण्हराईओ।
कठिन शब्दार्थ-कण्हराईओ-कृष्ण राजियाँ, अक्खाडग-अखाड़ा, छलसाओषडंश - छह कोण, तंसाओ--व्यस्र-त्रिकोण, चउरंसाओ--चतुरस्र-चतुष्कोण ।
भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! कृष्णराजियों कितनी कही गई हैं ? २० उत्तर-हे गौतम ! कृष्णराजियां आठ कही गई हैं। २१ प्रश्न-हे भगवन् ! ये आठ कृष्णराजियां कहां कही गई हैं ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! सनत्कुमार और माहेन्द्र नामक तीसरे चौथे देवलोक से ऊपर और ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक के अरिष्ट नामक विमान के तीसरे प्रस्तट (पाथडे) के नीचे अखाड़ा के आकार समचतुरस्त्र संस्थान संस्थित आठ कृष्णराजियाँ हैं। यथा-पूर्व में दो, पश्चिम में दो, उत्तर में दो और दक्षिण में दो, इस तरह चार दिशाओं में आठ कृष्णराजियां हैं। पूर्वाभ्यन्तर अर्थात पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने दक्षिण दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्शा है। दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया है। पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने उत्तर दिशा की बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया है और उत्तर दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि ने पूर्व दिशा को बाह्य कृष्णराजि को स्पर्श किया है। पूर्व और पश्चिम दिशा को बाह्य दो कृष्णराजियाँ षडंश (षट्कोण) हैं। उत्तर और दक्षिण दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियां त्र्यंश (तीन कोणों वाली) हैं। पूर्व और पश्चिम
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