SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९९२ भगवती सूत्र - श. ६ उ. ४ जीव- प्रदेश निरूपण . में उत्पत्ति होती है, तब प्रथम समयवर्ती अप्रदेशत्व की अपेक्षा दूसरे दो भंग पाये जाते हैं, किन्तु इतनी विशेषता है कि काययोगी में एकेंद्रियों में अभंगक है । अर्थात् उनमें अनेक मंग नहीं पाये जाते, किन्तु 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश,' यह एक ही भंग पाया जाता है । तीनों योगों के दण्डकों में यथा सम्भव जीवादि पद कहने चाहिये, किन्तु सिद्ध पद नहीं .. कहना चाहिये । अयोगी द्वार का कथन अलेश्य द्वार के समान कहना चाहिये । इससे दूसरे दuse में, अयोगी जीवों में, जीव और सिद्ध पद में, तीन भंग कहने चाहिये और अयोगी मनुष्य में छह भंग कहने चाहिये । ११ उपयोग द्वार - साकार उपयोग वाले और अनाकार उपयोग वाले नैरयिक आदि में तीन भंग कहने चाहिये । जीव पद और पृथ्वी कायिकादि पदों में 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश,' यह एक ही भंग कहना चाहिये। इनमें (दोनों उपयोग में से ) किसी एक उपयोग में से दूसरे उपयोग में जाते हुए प्रथम समय और इतर समयों में सप्रदेशत्व और अप्रदेशत्व की घटना स्वयं कर लेनी चाहिये । सिद्धों में तो एक समयोपयोगीपत हैं, तो भी साकार उपयोग और अनाकार उपयोग की बारंबार प्राप्ति होने से सप्रदेशपन होता है और नये एकादि उत्पन्न होने वाले की अपेक्षा से अप्रदेशपन होता है, ऐसा जानना चाहिये । इस प्रकार साकार उपयोग को बारंबार प्राप्त ऐसे बहुत सिद्धों की अपेक्षा 'सभी सप्रदेश' यह एक भंग जानना चाहिये । और उन्हीं सिद्धों की अपेक्षा तथा एक बार साकार उपयोग को प्राप्त एक सिद्ध की अपेक्षा 'बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश' - यह दूसरा भंग जानना चाहिये । बारंबार साकार उपयोग को प्राप्त बहुत सिद्धों की अपेक्षा तथा एक बार साकारउपयोग को प्राप्त बहुत सिद्धों की अपेक्षा 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश' यह तीसरा भंग जानना चाहिये । अनाकार उपयोग में तो बारंबार अनाकार उपयोग को प्राप्त ऐसे बहुत सिद्ध जीवों की अपेक्षा प्रथम भंग जानना चाहिये । उन्हीं सिद्ध जीवों की अपेक्षा तथा एक -बार अनाकार उपयोग को प्राप्त एक सिद्ध जीव की अपेक्षा, दूसरा भंग समझना चाहिये । - बारंबार अनाकार उपयोग को प्राप्त बहुत सिद्ध जीवों की अपेक्षा एवं एक बार अनाकार उपयोग को प्राप्त बहुत सिद्ध जीवों की अपेक्षा तीसरा बंग जानना चाहिये । · १२ वेद द्वार-संवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान करना चाहिये । सवेदी जीवों में भी जीवादि पद में तीन भंग होते हैं, क्योंकि बेद को प्राप्त बहुत जीव और उपशम श्रेणी से गिरने के बाद वेद को प्राप्त होने वाले एकादि जीवों की अपेक्षा तीन मंग घटित होते हैं । एकेंद्रियों में एक ही भंग पाया जाता है। स्त्रीवेदक आदि में तीन भंग पाये Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy