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भगवतो मूत्र-ग... उ. ४ जीव-प्रदेश निरूपण
जाने हैं। जब एक वेद मे दुसरे बेद में संक्रमण होता है. तब प्रथम समय में अप्रदेशत्व और दूसरे ममयों में सप्रदेशत्व होता है । इस प्रकार तीन भंग घटित कर लेने चाहिये । नपुंसक वेद के एकवचन और बहुवचन से दोनों दण्डकों में, ए केन्द्रियों में 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश'-यह एक भंग पाया जाता है। स्त्री वेद और पुरुष वेद के दण्डकों में देव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य ही कहने चाहिये । नमक वेद के दण्डक में देवों को छोड़कर शष जीवादि पद कहने चाहिये, मिद्ध पद तो तीनों वेदों में नहीं कहना चाहिये । अवेदक का कथन, अकषायी की तरह कहना चाहिये । इसमें जीव, मनुष्य और मिद्ध, ये तीन पद ही कहने चाहिये । इनमें तीन भंग पाये जाते हैं।
१३ शरीर द्वार-सशरीरी के दोनों दण्डकों में औधिक दण्डक की तरह जीव पद में सप्रदेशत्व ही कहना चाहिये, क्योंकि सशरीरीपन अनादि हैं। नैरयिकादि में शरीरत्व का बहुत्व होने के कारण तीन भंग कहने चाहिय । एकेंद्रियों में तो केवल तीसरा भंग ही कहना चाहिये । औदारिक शरीर वाले और वैक्रिय शरीर वाले जीवों में जीवपद और एकेंद्रिय पदों में बहत्व के कारण एक तीसरा भंग ही पाया जाता है, क्योंकि जीवपद और एकेंद्रिय पदों में प्रतिक्षण प्रतिपन्न और प्रतिपद्यमान बहुत पाये जाते हैं । शेष जीवों में तीन भंग कहने चाहिये, क्योंकि बाकी जीवों में प्रतिपन्न बहुत पाये जाते हैं। तथा औदारिक और वैक्रिय शरीर को छोड़कर दूसरे औदारिक और वैक्रिय शरीर को प्राप्त होने वाले एकादि जीव पाये जाते हैं । यहाँ औदारिक शरीर के दोनों दण्डकों में नरयिक और देवों का कथन नहीं करना चाहिये, क्योंकि इनके औदारिक गरीर नहीं होता । वैक्रिय शरीर के दोनों दण्डकों में पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वनस्पतिकाय और विकलेन्द्रिय जीवों का कथन नहीं करना चाहिये, क्योंकि इनके वैक्रिय शरीर नहीं होता । वैक्रिय दण्डक में एकेन्द्रिय पद में जो 'बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश'-यह तीसरा भंग कहा है, यह असंख्यात वायुकायिक जीवों में प्रतिक्षण होने वाली वैक्रिय क्रिया की अपेक्षा से कहा गया है। यद्यपि वैक्रिय लब्धि वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य थोड़े होते हैं, तथापि उनमें जो तीन भंग कहे गये हैं, उसकी अपेक्षा तो वैक्रिय-लब्धि वाले पंचेन्द्रिय तियंच और मनुष्य बहुत संख्या में होने चाहिये-ऐसा सम्भवित है। उन पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्यों में एकादि जीवों को वैक्रिय शरीर की प्रतिपद्यमानता जाननी चाहिये। इसीसे तीन भंगों की घटना होगी। आहारक शरीर की अपेक्षा जीव और मनुष्यों में पूर्वोक्त छह भंग जानने चाहिये । क्योंकि आहारक शरीर वाले अशाश्वत हैं । जीव और मनुष्य पदों के सिवाय दूसरे जीवों में आहारक शरीर नहीं
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