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भगवती सूत्र-श. ६ उ. ४ जीव-प्रदेश निरूपण
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सवेदक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान करना चाहिये। स्त्री-वेदक, पुरुष-वेदक और नपुंसक-वेदक जीवों में, जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि नपुंसक-वेद में एकेंद्रियों के विषय में अभंग कहना चाहिये। अवेदक जीवों का कथन अकषायी जीवों के समान कहना चाहिये।
सशरीरी जीवों का कथन औधिक जीवों के समान कहना चाहिये। औदारिक शरीर वाले और वैक्रिय शरीर वाले जीवों के लिये, जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये। आहारक शरीर वाले जीवों में जीव और मनुष्य मे छह भंग कहने चाहिये। तेजस और कार्मण शरीर वाले जीवों का कथन औधिक जीवों के समान कहना चाहिये । अशरीरी जीव और सिद्धों के लिये तीन भंग कहने चाहिये।
आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति और श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेंद्रिय को छोडकर तीन भंग कहने चाहिये। भाषा मनःपर्याप्ति वाले जीवों का कथन, संजी जीवों के समान कहना चाहिये। आहार अपर्याप्ति वाले जीवों का कथन, अनाहारक जीवों के समान कहना चाहिये । शरीर अपर्याप्ति, इन्द्रिय अपर्याप्ति और श्वासोच्छवास अपर्याप्ति वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये। नरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिये । भाषा मन अपर्याप्ति वाले जीव आदि में तीन भंग कहने चाहिये । नरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग कहने चाहिये।
. संग्रह गाथा का अर्थ इस प्रकार है-सप्रदेश, आहारक, भव्य, संजी, . लेश्या, दृष्टि, संयत, कषाय, ज्ञान, योग, उपयोग, वेद, शरीर और पर्याप्ति, इन चौदह द्वारों का कथन ऊपर किया गया है।
विवेचन-तीसरे उद्देशक में जीवों का निरूपण किया गया है। अब इस चौथे उद्देशक में दूसरे प्रकार से चौदह द्वारों में जीवों का निरूपण किया जाता है;--
१ सप्रवेश द्वार-कालादेश का अर्थ है-काल की अपेक्षा से । विभाग सहित को सप्र
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