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भगवती सूत्र - श. ६ उ. ४ जीव- प्रदेश निरूपण
देश कहते हैं और विभाग रहित को अप्रदेश कहते हैं । जीव अनादि है, इसलिए उसकी स्थिति अनन्त समय की है, इसीलिए वह सप्रदेश है । जो एक समय की स्थिति वाला होता है, वह काल की अपेक्षा अप्रदेश है और जो एक समय से अधिक दो तीन चार आदि समय की स्थिति वाला होता है, वह काल की अपेक्षा सप्रदेश होता है । यही बात गाथा द्वारा इस प्रकार कही गई है;
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जो जस्स पढमसमए वट्टइ भावस्स सो उ अपएसो । अणमिवमाणो काला सेण सपएसो ॥
अर्थ - जो जीव जिस भाव के प्रथम समय में वर्तता है, वह जीव 'अप्रदेश' कहलाता है । जो जीव जिस भाव के प्रथम समय के बाद दूसरे, तीसरे, चौथे आदि समयों में में वर्तता है, वह कालादेश की अपेक्षा 'सप्रदेश' कहलाता है ।
जिस नैरयिक जीव को उत्पन्न हुए एक ही समय हुआ है, वह कालादेश की अपेक्षा 'अप्रदेश' कहलाता है और प्रथम समय के बाद दूसरे तीसरे आदि समय में वर्तता हुआ नैरयिक जीव, कालादेश की अपेक्षा 'सप्रदेश' कहलाता है। इसीलिये कहा गया हैं कि नैरयिक जीव, कोई प्रदेश और कोई अप्रदेश होता है। इस प्रकार जीव से लेकर सिद्ध पर्यन्त २६ cuss ( औधिक जीव का एक दण्डक, सिद्ध का एक दण्डक और नैयिक आदि जीवों के २४ दण्डक, इस प्रकार अपेक्षा विशेष से यहाँ पर २६ दण्डक कहे गये हैं) में एक वचन को लेकर कालादेश की अपेक्षा सप्रदेशत्वादि का विचार किया गया है। इस के बाद इन्ही २६ दण्डकों में बहुवचन को लेकर विचार किया गया है । उपपात विरह काल में पूर्वोत्पन्न जीवों की संख्या संख्यात होने से सभी सप्रदेश होते हैं। तथा पूर्वोत्पन्न नैरयिकों में जब एक भी दूसरा नैरयिक उत्पन्न होता है, तब उसकी प्रथम समय की उत्पत्ति की अपेक्षा उसका अप्रदेशत्व होने से वह 'अप्रदेश' कहलाता हैं। उसके सिवाय बाकी नैरयिक जिनकी उत्पत्ति को दो तीन चार आदि समय हो गये हैं, वे 'सप्रदेश' कहे गये हैं इसलिये मूल में यह कहा गया है कि 'बहुत प्रदेश होते हैं और एक अप्रदेश होता है।' इसी तरह जब बहुत जीव, उत्पद्यमान ( उत्पन्न होते हुए) होते हैं तब 'बहुत जीव सप्रदेश और बहुत जीव अप्रदेश' - ऐसा कहा जाता है । एक समय में एकादि नैरयिक उत्पन्न भी होते हैं । जैसा कि कहा है
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एगो व दो व तिष्ण व संखमसंखा च एगसमएणं । उववज्जंतेवइया उध्वट्टंता वि एमेव ॥
अर्थ - एक, , दो, तीन संख्याता और असंख्याता जीव एक समय में उत्पन्न होते हैं ।
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