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________________ ९८२ भगवती सूत्र-श. ६ उ. ४ जीव-प्रदेश निरूपण छह भंग कहने चाहिये । मिथ्यादृष्टि जीवों में एकेंद्रिय को छोडकर तीन भंग कहने चाहिये । सम्यगमिथ्यादष्टि जीवों में छह भंग कहने चाहिये । संयत जीवों में जीव आदि में तीन भंग कहने चाहिये । असंयत जीवों में एकेंद्रिय को छोड़ कर तीन भंग कहने चाहिये । संयतासंयत जीवों में जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये । नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत जीव और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिये । सकषायी (कषाय वाले) जीवों में जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये। एकेंद्रियों में अभंगक कहना चाहिये । क्रोध कषायी जीवों में जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये । देवों में छह भंग कहने चाहिये । मान. कषायी और माया कषायी जीवों में जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये । नेरयिक और देवों में छह भंग कहने चाहिये । लोभ कषायी जीवों में जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये । नरयिक जीवों में छह भंग कहने चाहिये । अकषायी जीवों में जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहने चाहिये । औधिक ज्ञान (समुच्चय ज्ञान) आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान में जीवादिक में तीन भंग कहने चाहिये। विकलेन्द्रियों में छह भंग कहने चाहिये । अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान में जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये । औधिक अज्ञान (समुच्चय अज्ञान) मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान में एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये । विभंगज्ञान में जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये ।। जिस प्रकार औधिक जीवों का कथन किया उसी प्रकार सयोगी जीवों का कथन करना चाहिये। मन-योगी, वचन-योगी और काय-योगी मे, जीवादि में तीन भंग कहने चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि एकेंद्रिय जीव केवल फाय-योग वाले ही होते हैं। उनमें अभंग कहना चाहिये । अयोगी जीवों का कथन अलेशी जीवों के समान कहना चाहिये। साकार उपयोग वाले और अनाकार उपयोग बाले जीवों में जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर तीन भंग कहने चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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