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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ तिष्यक देव की ऋद्धि
देवानुप्रिय ! जैसी दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय को मिला है, प्राप्त हुआ है, सम्मुख आया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव, देवेन्द्र देवराज शक्र को भी मिला है, प्राप्त हुआ है और सम्मुख आया है.। जैसी दिव्य देव ऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव, देवेन्द्र देवराज शक को मिला है, प्राप्त हुआ है और सम्मुख आया है, वैसी ही दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवकान्ति और दिव्य देवप्रभाव आप देवानुप्रिय को मिला है, प्राप्त हुआ है और सम्मुख आया है।
(अब अग्निभूति अनगार भगवान् से पूछते हैं) हे भगवन् ! तिष्यक देव कितनी महाऋद्धि वाला है और कितनी वैक्रिय शक्ति वाला है ? __११ उत्तर-वह तिष्यक देव महा ऋद्धि वाला है यावत् महाप्रभाव वाला है । वह अपने विमान पर, चार हजार सामानिक देवों पर, परिवार सहित चार अग्रमहिषियों पर, तीन सभा पर, सात सेना पर, सात सेनाधिपतियों पर, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों पर और दूसरे बहुत से वैमानिक देवों पर तथा देवियों पर सत्ताधीशपना भोगता हुआ यावत् विचरता है। वह तिष्यक देव ऐसी महाऋद्धि वाला है यावत् इतना वैक्रिय करने की शक्ति वाला हैं । युवति युवा के दृष्टान्तानुसार एवं आरों युक्त नाभि के दृष्टान्तानुसार वह शक्रेन्द्र जितनी विकुर्वणा करने की शक्ति वाला है । हे गौतम ! तिष्यक देव की जो विकुर्वणा शक्ति कही है, वह उसका सिर्फ विषय है, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा कभी उसने इतनी विकुर्वणा की नहीं, करता भी नहीं और भविष्यत् काल में करेगा भी नहीं।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि तिष्यक देव इतनी महाऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा करने की शक्ति वाला है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र के दूसरे सब सामानिक देव कितनी महा ऋद्धि वाले हैं, यावत् कितनी विकुर्वणा शक्ति वाले हैं ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! जिस तरह तिष्यक देव का कहा, उसी तरह
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