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________________ ५५८ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ तिष्यक देव की ऋद्धि अहुणोववण्णमेते-अधुनोपपन्नमात्र-तत्काल उत्पन्न हुआ, पज्जत्तीए-पर्याप्ति-पूर्णता से, पज्जत्तिभावं--पर्याप्ति भाव से, आणपाण-पज्जत्तीए-श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति से, करयलपरिग्गहियं-करतल परिगृहीत-दोनों हाथ जोड़कर, वसणहं-दस नखों को, सिरसावत्तं-- मस्तक पर आवर्तन करते हुए, लद्धे--लब्ध हुआ-मिला, पत्ते--प्राप्त हुआ, अभिसमण्णागए--अभिसमन्वागत हुआ-सम्मुख आया, जारिसिया--जसी, तारिसिया--वैसी, बुइएकहा गया है, संपत्तीए-सम्प्राप्ति द्वारा अर्थात् साक्षात् क्रिया द्वारा। भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र ऐसी महान ऋद्धि वाला है, यावत् इतना वैक्रिय करने की शक्ति वाला है, तो आपका शिष्य 'तिष्यक' नामक अनगार जो प्रकृत्ति से भद्र यावत् विनीत, निरन्तर छठ छठ तप द्वारा अर्थात् निरन्तर बेले बेले पारणा करने से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, सम्पूर्ण आठ वर्ष तक साधु पर्याय का पालन करके मासिक संलेखना के द्वारा अपनी आत्मा को संयुक्त करके तथा साठ भक्त अनशन का छेदन कर (पालन कर) आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधि को प्राप्त होकर, काल के समय में काल करके सौधर्म देवलोक में गया है। वह वहाँ अपने विमान में उपपात सभा के देव-शयनीय में (देवों के बिछौने में) देवदूष्य (देववस्त्र) से ढंके हुए अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी अवगाहना में देवेन्द्र देवराज शक्र के सामानिक देवरूप से उत्पन्न हुआ है। तत्पश्चात् तत्काल उत्पन्न हुआ वह तिष्यक देव, पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तपने को प्राप्त हुआ अर्थात् आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रियपर्याप्ति, आनप्राणपर्याप्ति (श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति) और भाषामनःपर्याप्ति, इन पाँच पर्याप्तियों से उसने अपने शरीर की रचना पूर्ण की। जब वह तिष्यक देव, पाँचों पर्याप्तियों से पर्याप्त बन गया, तब सामानिक परिषद् के देव, दोनों हाथों को जोड़ कर एवं दसों अंगुलियों के दसों नखों को इकट्ठे करके मस्तक पर अञ्जलि करके जय विजय शब्दों द्वारा बधाया। इसके बाद वे इस प्रकार बोले कि-अहो ! आप देवानुप्रिय को यह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देव-कान्ति और दिव्य देव-प्रभाव मिला है, प्राप्त हुआ है और सम्मुख आया है । हे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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