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भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ तिष्यक देव की ऋद्धि
हिसीणं सपरिवाराणं, तिन्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणिया हिवईणं, सोलसहं आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च बहूणं वेमाणियाणं देवाणं, देवीणं य जाव - विहरइ, एवं महिड्ढीए जाव - एवइयं, चणं पभू विउव्वित्तए, से जहा णामए जुवई जुवाणे हत्थे हत्थे गेहेज्जा, जहेव सकस्स तहेव जाव - एस णं गोयमा ! तीसयस्स देवस्स अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुझ्ए, णो चेवणं संपत्ती विविंस वा विउब्वह वा विउव्विस्सह वा ।
१२ प्रश्न - जड़ णं भंते! तीसए देवे महिड्ढीए, जाव - एवइयं चणं पभू विउब्वित्तए, सक्क्स्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो अवसेसा सामाणिया देवा के महिड्ढीया ?
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१२ उत्तर - तहेव सव्वं, जाव - एस णं गोयमा ! सक्क्स्स देविदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्य देवस्स इमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुइए, णो चेव णं संपत्तीए विउव्विसु वा, विउव्वंति वा, विउव्विस्संति वा, तायत्तीसा य लोगपाल अग्गमहिसी णं जहेव चमरस्स, नवरं - दो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अण्णं तं चेव ।
सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति दोच्चे गोयमे जाव - विहरइ |
कठिन शब्दार्थ - तीसए - तिष्यक अनगार, पगइ भद्दए- प्रकृति से भद्र, अणिक्खित्तेणंअनिक्षिप्त- निरन्तर सित्ता-संयुक्त करके सेवन करके आलोइयपडिक्कते - आलोचना प्रतिक्रमण करके, समाहिपत्ते - समाधि प्राप्त कर, उववायसभाए - उपपात - उत्पन्न होने की सभा में, देवदूतरिए - देव वस्त्र से ढके हुए, ओगाहणाए - अवगाहना, उबवनो - उत्पन्न हुआ
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