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________________ भगवती सूत्र-श. ५ 3. ५ प्रकाश और अन्धकार भगवान महावीर स्वामी से इस प्रकार पूछा कि-हे भगवन् ! यह राजगृह नगर क्या कहलाता है ? क्या यह राजगृह नगर पृथ्वी कहलाता है ? जल कहलाता है ? यावत् वनस्पति कहलाता है ? जिस प्रकार एजनोद्देशक में पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में परिग्रह की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यहां भी कहनी चाहिए । अर्थात् क्या राजगृह नगर कूट कहलाता है, शैल कहलाता है ? यावत् सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्य, राजगृह नगर कहलाता हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त अचित्त मिश्र द्रव्य भी राजगृह नगर कहलाता है । २ प्रश्न-हे भगवन् ! इसका क्या कारण है ? २ उत्तर-हे गौतम ! पृथ्वी जीव ह और अजीव भी है, इसलिए वह राजगह नगर कहलाती है, यावत् सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य भी जीव हैं और अजीव हैं, इसलिए वे द्रव्य राजगृह नगर कहलाते हैं। इसलिए पृथ्वी आदि को राजगह नगर कहते हैं। विवेचन-प्रायः बहुत से प्रश्न गौतम स्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से राजगृह नगर में पूछे थे, क्योंकि भगवान् महावीर स्वामी के बहुत से विहार राजगृह नगर में हुए थे । इसलिए 'राजगृह नगर' के स्वरूप के निर्णय के लिए इस नौवें उद्देशक में कथन किया जाता है । राजगृह नगर क्या पृथ्वी है ? यावत् वनस्पति है ? इस प्रश्न के उत्तर में पांचवें शतक के 'एजन' नामक सातवें उद्देशक की भलामण दी गई है । उसमें की पञ्चेन्द्रिय तिर्यंचों में परिग्रह विषयक टंक, कूट, शैल शिखर आदि वक्तव्यता यहां कहनी चाहिए । पृथ्वी आदि का जो समुदाय है, वह राजगृह नगर है, क्पोंकि पृथ्वी आदि के समुदाय के बिना 'राजगृह' शब्द की प्रवृत्ति नहीं हो सकती । राजगृह नगर जीवाजीव रूप है । इसलिए विवक्षित भूमि सचित्त और अचित्त होने के कारण जीव और अजीव रूप है । अतएव राजगृह नगर जीवाजीव रूप है। . प्रकास और अन्धकार ३ प्रन-से गुणं भंते ! दिया उनोए, राई अंधयारे ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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