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________________ भगवती मूत्र-श. ५ उ. ८ जीवों की हानि और वृद्धि प्रकार दो प्रकार के सूत्र कहने की क्या आवश्यकता है ? क्योंकि उपचय का अर्थ है-'वृद्धि' अपचय का अर्थ है-'हानि' । एक साथ उपचय और अपचय तथा निरुपचय और निरपचय का अर्थ है अवस्थिति । इस प्रकार उपचय आदि शब्दों का वृद्धि आदि शब्दों के साथ समानार्थ है । केवल शब्द भेद के सिवाय इन दो प्रकार के सूत्रों में क्या भेद हैं ? समाधान-पहले वृद्धि आदि सूत्रों में जीवों के परिमाण का कथन इष्ट है । और इन उपचय आदि सूत्रों में तो परिमाण की अपेक्षा बिना मात्र उत्पाद और उद्वर्तन विवक्षित है । इसलिये यहां 'सोपचय, सापचय' इस तीसरे भंग में पहले कहे हुए वृद्धि, हानि और अवस्थिति, इन तीनों भंगों का समावेश हो जाता है । जैसे कि थोड़े जीवों का मरण और बहुतों का उत्पात हुआ, तो वृद्धि । बहुतों का मरण और थोड़े जीवों का उत्पात हुआ, तो हानि । और समान उत्पाद तथा उद्वर्तन हुआ तो अवस्थितपना होता है इस प्रकार पूर्व कथित वृद्धि, हानि और अवस्थिति के सूत्रों में तथा इन सोपचय आदि के सूत्रों में भेद है। एकेंद्रिय जीवों में 'सोपचयसापचय'-यह तीसरा पद पाया जाता है । अर्थात् उनमें एक साथ उत्पाद और उद्वर्तन होने से वृद्धि और हानि होती है । इस पद (विकल्प) के सिवाय एकेंद्रियों में दूसरे पद सम्भावित नहीं हैं । क्योंकि उनमें प्रत्येक का उत्पाद और उदर्तन के विरह का अभाव है। निरुपचय निरपचय अर्थात् अवस्थिति में व्युत्क्रान्ति काल (विरह काल) के अनुसार कहना चाहिये । जिसका वर्णन पहले कर दिया गया है । ॥ इति पांचवें शतक का आठवां उद्देशक समाप्त ॥ MS. ) ८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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