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________________ भगवती सूत्र ---- ग. ५ उ. 1. जीवों की हानि और वद्धि असंख्य भाग तक नैरयिक, सोपचय रहते हैं। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ? १६ उत्तर-हे गौतम ! जितना सोपचय का काल कहा, उतना ही सापचय का कहना चाहिये । १७ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक कितने काल तक सोपचय-सापचय रहते हैं ? १७ उत्तर-हे गौतम ! सोपचय का जो काल कहा गया है, उतना ही सोपचय-सापचय का कहना चाहिये। १८ प्रश्न-हे भगवन ! नैरयिक जीव, कितने काल तक निरुपचय निरपचय रहते हैं ? . १८ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त तक नैरयिक, निरुपचय निरपचय रहते हैं। सभी एकेंद्रिय जीव, सभी काल सोपचय सापचय रहते हैं। बाकी सभी जीवों में सोपचय, सापचय और सोपचयसापचय हैं। इन सब का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवां भाग है। अवस्थितों (निरुपचय निरपचय) में व्यत्क्रान्ति काल (विरहकाल) के अनुसार कहना चाहिये। १९ प्रश्न-सिद्धा णं भंते ! केवइयं कालं मोवचया ? १९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ समया। २० प्रश्न-केवइयं कालं णिरुवचय-णिरवचया ? २० उत्तर-जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छ मासा । * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति* ॥ पंचमसए अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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