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________________ 2,0% भगवती सूत्र - श. ५ उ ८ जीवों की हानि और वृद्धि १२ उत्तर - गोयमा ! जीवा णो सोवचयाः णो सावचया, णो सोवचय-सावचया, णिश्वचय- णिरवचया, एगिंदिया तईयपए, सेसा जीवा चहिं परहिं भाणियव्वा । १३ प्रश्न - सिद्धा णं पुच्छा ! १३ उत्तर - गोयमा ! सिद्धा सोवचया, णो सावचया, णो सोवचयसावचया, णिस्वचय- णिरवचया । कठिन शब्दार्थ - सोवचया - उपचय सहित - वृद्धि सहित, सावचया- अपचय सहित - हानि सहित । भावार्थ - १२ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या जीव सोपचय ( उपचय सहित ) हैं ? सापचय (अपचय सहित ) हं ? सोपवय सापचय ( उपचय और अपचय सहित ) हैं ? या निरूपचय, निरपचय ( उपचय और अपचय रहित ) हैं ? १२ उत्तर - हे गौतम! जीव सोपचय नहीं हैं, सापचय नहीं हैं, सोपचय सापचय नहीं हैं, परन्तु निरूपचय, निरपचय हैं। एकेंद्रिय जीवों में तीसरा पद (विकल्प) कहना चाहिये । अर्थात् एकेंद्रिय जीव, सोपचयसापचय हैं। बाकी सब जीवों में चारों पद कहना याहिये । १३ प्रश्न - हे भगवन् ! क्या सिद्ध भगवान् सोपचय है, सापचय हैं, सोपचय सापचय हैं, या निरूपचय निरपचय हैं ? १३ उत्तर - हे गौतम ! सिद्ध भगवान् सोपचय हैं. सापचय नहीं हैं, सोपचयापचय भी नहीं हैं। निरूपचयनिरपचय हैं । १४ प्रश्न - जीवा णं भंते ! केवइयं कालं णिरुवचय-रिवचया ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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