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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ निग्रंथी पुत्र अनगार के प्रश्न ८९७ प्पियाणं अतिए एयमटुं सोचा, णिसम्म जाणित्तए । -तएणं से णियंठिपुत्ते अणगारे णारयपुत्तं अणगार एवं वयासी-दव्वादेसेण वि मे अजो ! सव्वे पोग्गला सपएसा वि, अप्पएसा वि अणंता; खेत्तादेसेण वि एवं चेव, कालादेसेण वि, भावादेसेण वि एवं चेव, जे दव्वओ अपएसे से खेत्तओ णियमा अपएसे, कालओ सिय सपएसे, सिय अपएसे, भावओ सिय सपएसे, सिय अपएसे । जे खेत्तओअपएसे से दवओ सिय सपएसे, सिय अपएसे, कालओ भयणाए, भावओ भयणाए; जहा खेत्तओ एवं कालओ, भावओ। जे दव्वओ सपएसे से खेत्तओ सिय सपएसे, सिय अपएसे; एवं कालओ, भावओ वि । जे खेत्तओ सपएसे से दबओ णियमा सपएसे, कालओ भयणाए, भावओ भयणाए, जहा दव्वओ तहा कालओ, भावओ वि। कठिन शब्दार्थ- परिकहित्तए-कहने से । भावार्थ-इसके बाद नारदपुत्र अनगार ने निग्रंथीपूत्र अनगार से इस प्रकार कहा कि-हे देवानुप्रिय ! मैं इस अर्थ को नहीं जानता हूँ और नहीं देखता हूँ। हे देवानुप्रिय ! यदि इस अर्थ को कहने में आपको ग्लानि (कष्ट) नहीं हो, तो में आप देवानुप्रिय के पास इस अर्थ को सुनकर और जानकर अवधारण करना चाहता हूँ। इसके बाद निग्रंथीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा कि-हे आर्य ! मेरी धारणानुसार द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सप्रदेश भी हैं और अप्रदेश भी हैं। वे पुद्गल अनन्त हैं । क्षेत्रादेश, कालादेश और भावदेश Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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