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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ८ निग्रंथी पुत्र अनगार के प्रश्न एसा; एवं ते एगगुणकालए वि पोग्गले सअड्ढे, समझे, सपएसे तं चेव; अह ते एवं ण भवइ तो जं वयसि ‘दव्बादेसेण वि सब्बपोग्गला सअइढा, समज्झा, सपएसा; णो अणड्ढा, अमज्झा, अपएमा; एवं खेत्त-कालभावादेसेण वि' तं णं मिच्छा। कठिन शब्दार्थ - मिच्छा-मिथ्या । भावार्थ-तब निग्रंथीपुत्र अनगार ने नारद पुत्र अनगार से इस प्रकार कहा कि-हे आर्य ! यदि द्रव्यादेश से सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किंतु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तब तो आपके मतानुसार परमाणु पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश होना चाहिए, किंतु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं होना चाहिये । हे आर्य ! यदि क्षेत्रादेश मे भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश होना चाहिये । हे आर्य ! यदि कालादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश है, तो एक समय की स्थिति वाला पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश होना चाहिये । हे आर्य ! यदि भावादेश से. भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो एक गुण काला पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश होना चाहिये। यदि आपके मतानुसार ऐसा न हो, तो जो आप यह कहते हैं कि द्रव्यादेश, क्षेत्रादेश, कालादेश और भावादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो आपका कथन मिथ्या ठहरेगा ? | -तएणं से णारयपुत्ते अणगारे णियं ठिपुतं अणगारं एवं वयांसी-णो खलु देवाणुप्पिया ! एयमढे जाणामो, पासामो, जह णं देवाणुप्पिया णो गिलायंति परिकहित्तए तं इच्छामि णं देवाणु. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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