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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ केन्द्र की ऋद्धि ५५३ आयरक्खा उ। ___ अर्थ- चमरेन्द्र के चौसठ हजार सामानिक हैं, बलीन्द्र के साठ हजार सामानिक हैं । असुरकुमार के सिवाय सब के छह छह हजार सामानिक हैं । जिसके जितने सामानिक होते हैं, उससे चौगुने आत्मरक्षक देव होते हैं। धरण आदि प्रत्येक के छह छह अग्रमहिषियाँ हैं । धरणेन्द्र की तरह वाणव्यन्तरेन्द्रों का भी परिवार सहित वर्णन कहना चाहिए। वाणव्यन्तर देवों के एक दक्षिण दिशा का और एक उत्तर दिशा का, इस तरह प्रत्येक निकाय के दो दो इन्द्र होते हैं। वे इस प्रकार हैं काले य महाकाले, सुरूवपडिरूवपुण्णभद्देय । अमरवइमाणिभद्दे भीमे य तहा महाभीमे ।। किण्णर किंपुरिसे खलु सप्पुरिसे चेव तह महापुरिसे । अइकाय महाकाए गीयरई चेव गोयजसे ।। अर्थ-काल और महाकाल, सुरूप और प्रतिरूप, पूर्णभद्र और अमरपति (इन्द्र) मणिभद्र, भीम और महाभीम । किन्नर और किम्पुरुष, सत्पुरुष और महापुरुष, अतिकाथ और महाकाय, गीतरति और गीतयश । वाणव्यन्तर देवों में और ज्योतिषी देवों में त्रायस्त्रिंश और लोकपाल नहीं होते हैं । इसलिए उनका यहां कथन नहीं करना चाहिए । इनके चार हजार सामानिक देव होते हैं और इनसे चौगुने अर्थात् सोलह हजार आत्मरक्षक देव होते हैं । प्रत्येक इन्द्र के चारचार अग्रमहिषियाँ होती हैं । इन सब में दक्षिण के इन्द्रों के विषय में और सूर्य के विषय में द्वितीय गणधर श्री अग्निभूति ने पूछा है और उत्तर दिशा के इन्द्र के विषय में तथा चन्द्रमा के विषय में तृतीय गणधर श्री वायुभूति अनगार ने पूछा है । इनमें से दक्षिण के देव और सूर्य देव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भरने में समर्थ हैं और उत्तर दिशा के देव और चन्द्रदेव अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप से कुछ अधिक स्थल को भरने में समर्थ हैं। देवराज शाम देवराज शक्रेन्द्र की ऋद्धि १० प्रश्न-'भंते !' ति भगवं दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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