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भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ धरणेन्द्र की ऋद्धि
दृष्टान्त से (जैसे वे दोनों संलग्न दिखाई देते हैं उसी तरह से ) यावत् वह अपने द्वारा वैकिकृत बहुत से नागकुमार देवों से तथा नागकुमार देवियों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को ठसाठस भरने में समर्थ है और तिर्छा संख्यात् द्वीप समुद्रों जितने स्थल को भरने की शक्ति वाला है । संख्यात द्वीप समुद्र जितने स्थल को भरने की मात्र शक्ति है, मात्र विषय है, किन्तु ऐसा उसने कभी किया नहीं, करता नहीं और भविष्यत् काल में करेगा भी नहीं । इनके सामानिक देव, त्रायस्त्रशक देव, लोकपाल और अग्रमहिषियों के लिए चमरेन्द्र की तरह कथन करता चाहिए, विशेषता यह है कि इनकी विकुर्वणा शक्ति के लिये संख्यात द्वीप - समुद्रों का ही कहना चाहिए । इसी तरह यावत् स्तनितकुमारों तक सब भवनवासी देवों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि दक्षिण दिशा के सब इन्द्रों के विषय में द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगार ने पूछा है और उत्तर दिशा के सब इन्द्रों के विषय में तृतीय गौतम श्री वायुभूति अनगार ने पूछा है ।
विवेचन - जिस प्रकार धरण का वर्णन किया गया है, उसी तरह भूतानन्द से लेकर महाघोष पर्यन्त भवनपति के इन्द्रों के विषय में कहना चाहिए। भवनपति देवों के इन्द्रों के नामों को सूचित करने वाली गाथाएँ इस प्रकार हैं
चमरे धरणे तह वेणुदेव - हरिकंत अग्गिसी य । पुणे जलकंते वि य अमिय-विलंबे य घोसे य ॥
- भूयादे वेणुदालि-हरिस्सहे अग्गिमाणव वसिट्ठे । जलप्प अभियवाहणे पहंजणे महाघोसे ||
अर्थ- चमर, धरण, वेणुदेव, हरिकान्त, अग्निशिख, पूर्ण, जलकान्त, अमित, विलम्ब और घोष, ये दस दक्षिण निकाय के इन्द्र हैं । बलि, भूतानन्द, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमाणव, वशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष, ये दस उत्तरनिकाय
इन्द्र हैं ।
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इनके भवनों की संख्या- 'चउत्तीसा चउचत्ता' इत्यादि पहले कही हुई दो गाथाओं में बतलाई गई है । इनके सामानिक और आत्मरक्षक देवों की संख्या इस प्रकार हैचउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्साओ असुरवज्जाणं । सामाणियाओ एए चउग्गुणा
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