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भगवती मूत्र-श .३ उ. १ धरणेन्द्र की ऋद्धि
आयरक्खदेवसाहस्सीणं, अण्णेसिं च जाव-विहरइ । एवइयं च णं पभू विउवित्तए, से जहा नामए जुवई जुवाणे जाव-पभू केवलकप्पं जंबूदीवं, दीवं जाव-तिरियं संखेजे दीवसमुद्दे बहूहिं णागकुमारीहिं जाव-विउव्विस्संति वा, सामाणिया, तायत्तीसलोगपाला,अग्गमहिसीओ य तहेव जहा चमरस्स णवरं-संखेजे दीवे समुद्दे भाणियब्वे, एवं जाव-थणियकुमारा, वाणमंतरा, जोई. सिया वि, णवरं-दाहिणिल्ले सव्वे अग्गिभूई पुच्छइ, उत्तरिल्ले सब्वे वाउभई पुच्छ्इ ।
कठिन शब्दार्थ-अणियाणं-सेना पर, अणियाहिवइणं-सेनाधिपति पर, दाहिणिल्लेदक्षिण दिशा के, उत्तरिल्ले-उत्तर दिशा के ।
भावार्थ-९ प्रश्न-इसके बाद दूसरे गौतम अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके वे इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! यदि वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि ऐसी महा ऋद्धि वाला है यावत् इतनी वैक्रिय शक्ति वाला है, तो नागकुमारेन्द्र नागकुमार-राज धरण कितनी बडी ऋद्धि वाला है यावत् कितनी वैक्रिय शक्ति वाला है ?
९ उत्तर-हे गौतम ! वह नागकुमारेन्द्र नागकुमार-राज धरण, महाऋद्धि वाला है यावत् वह चवालीस लाख भवनावासों पर, छह हजार सामानिक देवों पर, तेतीस त्रास्त्रिशक देवों पर चार लोकपालों पर, परिवार सहित छह अग्रमहिषियों पर, तीन सभा पर, सात सेना पर, सात सेनाधिपतियों पर और चौबीस हजार आत्मरक्षक देवों पर तथा दूसरों पर स्वामीपना भोगता हुआ यावत् विचरता है। उसकी विकर्वणा शक्ति इतनी है कि युवती युवा के
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