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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ धरणेन्द्र की ऋद्धि विवेचन - 'वैरोचनेन्द्र' शब्द का अर्थ करते हुए टीकाकार ने लिखा है" दाक्षिणात्यासुरकुमारेभ्यः सकाशाद् विशिष्टं रोचनं दीपनं येषामस्ति ते वैरोचना औदीच्यासुराः, तेषु मध्ये इन्द्रः परमेश्वरो वैरोचनेन्द्रः ।" ५५० अर्थ- दक्षिण दिशा के असुरकुमारों की अपेक्षा जिनकी कान्ति विशिष्ट अधिक है उनको वैरोचन कहते है अर्थात् दक्षिण दिशा के असुरकुमारों की अपेक्षा उत्तर दिशा के असुरकुमारों की कान्ति विशेष है, इसलिए उत्तर दिशा के असुरकुमारों को वैरोचन कहते हैं और उनके इन्द्र को 'वैरोचनेन्द्र' कहते हैं । उनकी शक्ति चमरेन्द्र की अपेक्षा अधिक है । इसलिए वह अपने वैक्रियकृत रूपों से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप से कुछ अधिक भाग को भर देता है । नागराज धरणेन्द्र ९ प्रश्न - 'भंते!' त्ति भगवं दोच्चे गोयमे अग्निभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंद णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीजड़ णं भंते ! बली बहरोयणिंदे, वइरोयणराया एमहिड्ढीए, जावएवइयं च णं पभू विउव्वित्तए, धरणे णं भंते ! णागकुमारिंदे, णागकुमारराया केमहिड्ढीए जाव - केवइयं च णं पभू विउब्वितए ? ९ उत्तर - गोयमा ! धरणे णं णागकुमारिंदे, णागकुमारराया एवं महिड्ढीए, जाव - से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, छण्हं सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए, तायत्तीसगाणं चउन्हं लोगपालाणं, छहं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिह परिमाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं चउव्वीसाए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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