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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ शकेन्द्र की ऋद्धि
गारे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-जइ णं भंते ! जोइसिंदे, जोइसराया एमहिड्ढीए, जावएवइयं च णं पभू विउवित्तए, सक्के णं भंते ! देविंदे, देवराया केमहिड्ढीए, जाव-केवइयं च णं पभू विउवित्तए ?
१० उत्तर-गोयमा ! सक्के णं देविंदे, देवराया एवं महिड्ढीए, जाव-महाणुभागे, से णं तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्साणं, चउरासीए सामाणियसाहस्सीणं, जाव-चउण्हं चउरासीणं आयरक्खसाहस्सीणं अण्णेसिं जाव-विहरइ, एमहिड्ढीए, जाव- एवइयं च णं पभ विउवित्तए, एवं जहेव चमरस्स तहेव भाणियव्वं, नवरंदो केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अवसेसं तं चेव, एस णं गोयमा ! सकस्स देविंदस्स, देवरण्णो इमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते णं बुइए, नो चेव णं संपत्तीए विउब्बिसु वा, विउव्वइ वा, विउविरसइ वा ।
कठिन शब्दार्थ-जोइसिदे-ज्योतिषी के इन्द्र, सक्के-शक, देविदे-देवेन्द्र,अवसेसं-बाकी।
भावार्थ-१० प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा कह कर द्वितीय गौतम भगवान् अग्निभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके वे इस प्रकार बोले-हे भगवन् ! यदि ज्योतिषीइन्द्र, ज्योतिषीराज ऐसी महा ऋद्धि वाला है और इतना वैक्रिय करने की शक्ति वाला है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र कितनी बडी ऋद्धिवाला है और कितना वैक्रिय करने की शक्ति वाला है।
१० उत्तर-हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक मोटी ऋद्धि वाला है यावत्
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