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भगवती सूत्र श. ५ उ. ६ धनुर्धर की क्रिया
वाले आसन से बैठे, बैठ कर फेंके जाने वाले बाण को कान तक खींचे, खींच कर ऊंचे आकाश में बाण फेंके। ऊंचे आकाश में फेंका हुआ वह बाण, वहाँ जिन प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का अभिहनन करे, उनके शरीर को संकुचित करे, उन्हें श्लिष्ट करें, उन्हें परस्पर संहत करे, उनका स्पर्श करे, उनको चारों तरफ .से पीड़ा पहुंचावे, उन्हें क्लान्त करे अर्थात् मारणान्तिक समुद्घात तक ले जावे, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जावे और उन्हें जीवन से रहित कर देवे, तो हे भगवन् ! उस पुरुष को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
१० उत्तर - हे गौतम! यावत् वह पुरुष धनुष को ग्रहण करता है यावत् बाण को फेंकता है तावत् वह पुरुष कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिकी - इन पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन जीवों के शरीर से वह धनुष बना है, वे जीव भी पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । इस तरह धनुःपृष्ठ (धनुष की पीठ), पांच क्रिया से स्पृष्ट होती है, जीवा ( डोरी) पांच क्रिया से स्पृष्ट होती है, हारू ( स्नायु) पांच क्रिया से स्पृष्ट होती है, बाण पांच क्रिया से स्पष्ट होता है, शर, पत्र, फल और पहारू पांच क्रिया से स्पृष्ट होता है ।
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११ प्रश्न - हे भगवन् ! जब वह बाण, अपनी गुरुता, भारीपन और गुरुतासंभारता द्वारा स्वाभाविक रूप से नीचे गिरता है, तब ऊपर से नीचे गिरता हुआ वह बाण, बीच मार्ग में प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों को यावत् जीवन रहित करता है, तब उस बाण फेंकने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ?
११ उत्तर - हे गौतम ! जब वह बाण, अपनी गुरुता आदि द्वारा नीचे गिरता हुआ यावत् जीवों को जीवन रहित करता है, तब वह पुरुष, कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है और जिन जीवों के शरीर से धनुष बना है, वे जीव भी चार क्रिया से स्पृष्ट होते हैं । धनुःपृष्ठ चार क्रिया से, डोरी चार क्रिया से, हारू चार क्रिया से, बाण पांच क्रिया से, शर, पत्र, फल और हारू पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। नीचे पड़ते हुए बाण के अवग्रह में जो जीव आते
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