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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ धनुर्धर की क्रिया
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पाणाइवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणुं णिवत्तिए ते वि य णं जीवा काइयाए, जाव-पंचहिं किरियाहिं पुढे, एवं धणु पुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, हारू पंचहिं, उसू पंचहिं, सरे, पतणे, फले, हारू पंचहि ।
११ प्रश्न-अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, भारियत्ताए, गुरुसंभारियत्ताए, अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाइं तत्थ पाणाइं जावजीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कइकिरिए ?
११ उत्तर-गोयमा ! जावं च णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए, • जाव-चवरोवेइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए, जाव-चउहि किरि
याहिं पुढे, जेसि पि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू णिव्वत्तिए ते वि जीवा चउहि किरियाहिं, धणु पुढे चउहि, जीवा चउहि, हारू चाहिं, उसू पंचहिं, सरे, पत्तणे, फले, हारू पंचहिं, जे वि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटुंति ते वि य णं जीवा काइयाए, जाव‘पंचहि किरियाहिं पुट्ठा।
कठिन शब्दार्थ-परामुसह-स्पर्श करता है, उसु-बाण, आययकण्णाययं-कान तक खिचा हुआ, वेहासं-आकाश में, उग्विहइ-फेंके, वत्तेइ-संकुचित करे, लेसेइश्लिष्ट करे, संघाएइ-परस्पर संहत करे, संघट्टेइ-स्पर्श करे, ठाणाओ ठाणं संकमइएक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान ले जाय, जीवा-डोरी, हारू-स्नायु, वीससाएस्वाभाविक, पच्चोवयमाणे-नीचे गिरता हुआ।
भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई पुरुष, धनुष को ग्रहण करे, धनुष को ग्रहण करके बाण को ग्रहण करे, बाण को ग्रहण करके धनुष से बाण फेंकने
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