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भगवती सूत्र - श. ५ उ. ६ गृहपति को भाण्ड आदि से लगने वाली क्रिया
७ उत्तर - गोयमा ! कइयस्स ताओ भंडाओ हेट्ठिल्लाओ चत्तारिकिरियाओ कजति मिच्छादंसणवत्तिया किरिया भयणाए; गाहावइस्स णं ताओ सव्वाओ पयणु भवंति ।
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८ प्रश्न - गाहावइस्स णं भंते ! भंडे जाव-धणे य से अणुवणीए सिया ?
८ उत्तर - एयं पि जहा भंडे उवणीए तहा णेयव्वं चउत्थो आलावगो, धणे य से उवणीए सिया जहा - पढमो आलावगो, भंडे य से अणुवणीए सिया तहा णेयव्वो, पढम-चउत्थाणं एको गमो विईय-तईयाणं एको गमो ।
कठिन शब्दार्थ - उवणीए - उपनीत - ले गया, एक्को गमो - एक ही प्रकार से ।
भावार्थ - ७ प्रश्न - हे भगवन् ! विक्रेता गृहपति के यहाँ से खरीददार वह भाण्ड अपने यहाँ ले आया । ऐसी स्थिति में हे भगवन् ! उस खरीददार को आरम्भिक यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रियाओं में से कितनी क्रियाएँ लगती हैं, और उस विक्रेता गृहपति को कितनी क्रियाएँ लगती हैं ?
७ उत्तर - हे गौतम ! उपरोक्त स्थिति में खरीददार को आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी और अप्रत्याख्यानिकी - ये चारों क्रियाएँ भारी प्रमाण में लगती हैं और मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया को भजना है अर्थात् यदि खरीददार मिथ्यादृष्टि हो, तो मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लगती है और यदि वह मिथ्यादृष्टि न हो, तो नहीं लगती है। विक्रेता गृहपति को मिथ्यादर्शन क्रिया की भजना के साथ ये सब क्रियाएँ अल्प होती हैं ।
८ प्रश्न
- हे भगवन् ! भाण्ड के विक्रेता गृहपति के पास से खरीददार ने वह भाण्ड खरीद लिया, परन्तु जबतक उस माल का मूल्य रूप धन उस
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