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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ६ गृहपति को भाण्ड आदि से लगने वाली क्रिया ८४७ गृहस्थ उस किराणे की खोज करे, तो हे भगवन् ! खोज करते हुए उस गृहस्थ को क्या आरम्भिकी क्रिया लगती है, पारिग्रहिकी क्रिया लगती है, मायाप्रत्ययिकी क्रिया लगती है, अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगती है, या मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लगती है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी और अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लगती है, किन्तु मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती। भाण्ड (किराणा) की खोज करते हुए यदि चुराई गई वस्तु वापिस मिल जाय, तो वे सब क्रियाएँ प्रतनु (अल्प-हल्की) हो जाती है। ६ प्रश्न-हे भगवन् ! कोई गृहस्थ अपना भाण्ड-वस्तु बेच रहा है, खरीरदार ने वह वस्तु खरीद ली और अपने सौदे को पक्का करने के लिए उसने साई (बयाना) दे दिया, परन्तु वह उस माल को ले नहीं गया अर्थात् उसी विक्रेता के पास पड़ा हुआ है, ऐसी स्थिति में हे भगवन् ! उस विक्रेता को आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रियाओं में से कौनसी क्रियाएँ लगती हैं ? ६ उत्तर-हे गौतम ! ऐसी स्थिति में उस विक्रेता गृहपति को आरंभिकी पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी और अप्रत्याख्यानिकी, ये चार क्रियाएं लगती हैं और मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया कदाचित् लगती है और कदाचित् नहीं लगती है । खरीददार को ये सब क्रियाएँ प्रतनु होती हैं। .७ प्रश्न-गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स, जाव-भंडे से उवणीए सिया, कइयस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजइ, जाव-मिच्छादसणवत्तिया किरिया कजइ; गाहावइस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजइ; जाव-मिच्छादसण- . वत्तिया किरिया कजइ ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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