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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ केवली का ज्ञान ८२१ सूत्र और अर्थ दोनों रूप आगम को सूत्रार्थागम (तदुभयागम) कहते हैं । __ अथवा आगम ज्ञान के दूसरी तरह से भी तीन भेद हैं । यथा-आत्मागम, अनन्तरागम और परम्परागम । अर्थ तीर्थकरों के लिये आत्मागम हैं । गणधरों के लिये अनन्त रागम हैं । और गणधरों के शिष्य प्रशिष्य आदि के लिये परम्परागम हैं । सूत्र गणधरों के लिय आत्मागम हैं । गणधरों के शिष्यों के लिये अनन्तरागम हैं, और गणधरों के प्रशिष्यों के लिये परम्परागम हैं। केवली का ज्ञान २५ प्रश्न-केवली णं भंते ! चरिमकम्मं वा, चरिमणिजरं वा जाणइ पासइ ? - ___२५ उत्तर-हंता, गोयमा ! जाणइ पासइ, जहा णं भंते ! केवली चरिमकम्मं वा जहा णं अंतकरणं वा आलावगो तहा चरिमकम्मेण वि अपरिसेसिओ णेयव्वो। २६ प्रश्न केवली णं भंते ! पणीयं मणं वा वई वा धारेज्जा ? २६ उत्तर-हंता, धारेजा। कठिन शब्दार्थ-चरिमकम्मं-वह अंतिम कर्म पुद्गल जो आत्मा के साथ बद्ध हो, चरिमणिज्जरं-वह कर्म पुद्गल जो अंत में आत्मा से पृथक् हुआ हो, पणीयं-प्रणीत-प्रकृष्ट। . भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या केवली भगवान् चरम-कर्म (अंतिम कर्म) अथवा चरम-निर्जरा को जानते देखते हैं ? २५ उत्तर-हे गौतम ! हां, जानते और देखते हैं। जिस प्रकार 'अंतकर' का आलापक कहा, उसी तरह 'चरमकर्म' का भी पूरा आलापक कहना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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