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भग
|-श. ५ उ.४ प्रमाण
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जो जिन भगवान् के पास सुनता है, उसको 'केवली का श्रावक' कहते हैं । वह जिन भगवान् के पास अन्य अनेक वाक्य सुनता हुआ यह मनुष्य अन्तकर है'-इत्यादि वाक्य भी सुनता है। अतः उसके पास सुन कर छद्मस्थ मनुष्य भी यह जानता है कि यह अन्तकर है। (३) इसी तरह केवली की श्राविका के पास से सुनकर भी जानता है । ( ४ ) केवली के उपासक-सुनने की इच्छा के बिना जो केवली महाराज की उपासना में तत्पर होकर उपासना करता है, उसे 'केवली का उपासक' कहते हैं। केवली भगवान् की उपासना करते हुए वह 'यह मनुष्य अन्तकर है'-इ-यादि केवली वाक्यों को सुनता है । इसलिये उसके पास से सुनकर छद्मस्थ मनुष्य भी यह जानता है कि यह अन्तकर है। (५) इसी तरह केवली की उपासिका से सुनकर भी वह जानता है। (६) केवली-पाक्षिक का अर्थ 'स्वयं बुद्ध' है । स्वयंबुद्ध, (७) स्वयंबुद्ध का श्रावक, (८) स्वयंबुद्ध की श्राविका, (५) स्वयंबुद्ध का उपासक और (१०) स्वयंबुद्ध की उपासिका, इनके पास से सुनकर भी छद्मस्थ मनुष्य यह जानता है कि यह अन्तकर है।
प्रमाण
२४ प्रश्न-से किं तं पमाणे ?
२४ उत्तर-पमाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे, आगमे; जहा अणुओगदारे तहा णेयव्वं पमाणं, जाव-'तेण परं णो अत्तागमे, णो अणंतरागमे, परंपरागमे ।
कठिन शब्दार्थ-पच्चक्खे-प्रत्यक्ष, ओवम्मे-उपमा, परं-आगे, अत्तागमेआत्मागम-आत्मा से आया हुआ श्रुतज्ञान, अनणंरागमे - गुरु से प्रधान शिष्य को सीधा प्राप्त हुआ श्रुतज्ञान, परम्परागमे-गुरु परम्परा से प्राप्त हुआ श्रुतज्ञान ।
भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रमाण कितने हैं ?
२४ उत्तर-हे गौतम ! प्रमाण चार प्रकार का कहा गया है । यथाप्रत्यक्ष, अनुमान, औपम्य (उपमान) और आगम । प्रमाण के विषय में जिस
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