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________________ . ८१८ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ छद्मस्थ सुनकर जानता है . . . . कठिन शब्दार्थ--अंतकर--भव का अन्त करके मोक्ष पाने वाला, पमाणओ-प्रमाण से, तप्पक्खियाए-तत्पाक्षिक से। भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या केवली भगवान् अन्तकर को अथवा अन्तिम शरीरी को जानते और देखते हैं ? २१ उत्तर-हाँ गौतम ! जानते और देखते हैं। २२ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस प्रकार केवली भगवान् अन्तकर (कर्मों का अन्त करने वाले) को अथवा अन्तिम शरीरी को जानते और देखते है, उसी प्रकार छमस्थ मनुष्य भी अन्तकर को अथवा अन्तिम शरीरी को जानता और देखता है ? २२ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, किन्तु छद्मस्थ मनुष्य भी किसी के पास से सुनकर अथवा प्रमाण द्वारा अन्तकर और अन्तिम शरीरी को जानता और देखता है। २३ प्रश्न-हे भगवन् ! वह किसके पास सुनकर यावत् जानता और देखता है ? २३ उत्तर-हे गौतम ! केवली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवली के उपासक, केवली की उपासिका, केवली-पाक्षिक (स्वयंबुद्ध), केवली. पाक्षिक के श्रावक, केवली-पाक्षिक की श्राविका, केवली-पाक्षिक के उपासक और केवली-पाक्षिक की उपासिका, इनमें से किसी के पास सुनकर छद्मस्थ मनुष्य यावत् जानता और देखता है। विवेचन--केवली और छद्मस्थ वक्तव्यता में ही यह बात कही जाती है। जिस प्रकार केवली भगवान् जानते हैं, उस तरह तो छप्रस्थ नहीं जानता है, किन्तु कथञ्चित् जानता है । यही बात बतलाई जा रही है छमस्थ मनुष्य भी केवली आदि दस व्यक्तियों के पास से सुन कर यह जान सकता है कि-यह मनुष्य कर्मों का अन्त करने वाला और अन्तिम-शरीरी है । वे दस व्यक्ति ये हैं (१) केवली-केवलज्ञान केवलदर्शन के धारक, सर्वज्ञ सर्वदर्शी के पास से 'यह अन्तकर है' इत्यादि वचन सुन कर जानता है । (२) केवली के श्रावक-सुनने का अभिलाषी होकर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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