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भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ देवों की भाषा
विवेचन-अगले प्रकरण में देवों का कथन किया गया था और इस प्रकरण में भी उन्ही के सम्बन्ध में कथन किया जाता है।
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि देवों को संयत, असंयत, या संयतासंयत नहीं कहना चाहिये । उन्हें 'नोसयत' कहना चाहिये।
शंका-'असंयत' और 'नो संयत' इन दोनों शब्दों का अर्थ तो एक सरीखा है। फिर देवों को 'असंयत' नहीं कहकर 'नो संयत' कहने का क्या कारण है ? ।
- समाधान-जिस प्रकार 'मृत' अर्थात् मर गया' और 'स्वर्गगत' अर्थात् स्वर्गवासी हो गया, इन दोनों शब्दों का एक ही अर्थ है, तथापि मर गया' यह कहना निष्ठुर (कठोर) वचन है । इसकी अपेक्षा स्वर्गवासी हो गया,' यह कहना अनिष्ठुर वचन है। इसी तरह 'असंयत' शब्द की अपेक्षा 'नोसंयत' शब्द अनिष्ठुर है, इमलिये देवों के लिये 'असंयत' शब्द का प्रयोग न करके 'नो संयत' शब्द का प्रयोग किया गया है ।
देवों की भाषा
२० प्रश्न-देवा णं भंते ! कयराए भासाए भासंति, कयरा वा भासा भासिन्जमाणी विसिस्सइ ? . २० उत्तर-गोयमा ! देवा णं अद्धमागहाए भासाए भासंति, सा वि य णं अद्धमागहा भासा भासिजमाणी विसिस्सइ ।
कठिन शब्दार्थ-अद्धमागहा-अर्धमागधी, विसिस्सइ-विशिष्ट रूप होती है।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! देव कौनसी भाषा बोलते हैं ? अथवा देवों द्वारा बोली जाती हुई कौनसी भाषा विशिष्टरूप होती है ?
२० उत्तर-हे गौतम ! देव अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं और बोली जाती हुई यह अर्धमागधी भाषा विशिष्टरूप होती है।
विवेचन-देव कौनसी भाषा बोलते हैं ?' इसके उत्तर में भगवान् ने फरमाया कि 'देव अर्धमागधी भाषा में बोलते है और वह विशिष्ट रूप होती है।
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