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________________ भगवती सूत्र - श. ५ उ. ४ देव नोसंयत १६ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समटे, अब्भक्खाणमेयं । १७ प्रश्न-देवा णं भंते ! असंजया ति वत्तव्वं सिया ? १७ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समढे, णिठुरवयणमेयं । १८ प्रश्न-देवा णं भंते ! संजयाऽसंजया ति वत्तव्वं सिया ? १८ उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समढे, असब्भूयमेयं देवाणं । १९ प्रश्न-से किं खाइ णं भंते ! देवा इति वत्तव्यं सिया ? १९ उत्तर-गोयमा ! देवा णं णो संजया इ वत्तव्यं सिया । कठिन शब्दार्थ-संजया-संयत-संयमवान्, अब्भक्खाणं-अभ्याख्यान-असत्य, निठुरवयणं-निष्ठुर वचन, असब्भूयं-असद्भूत-अनहोना। भावार्थ-१६ प्रश्न-'हे भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधित करके भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करके यावत् इस प्रकार पूछा हे भगवन् ! क्या देवों को 'संयत' कहना चाहिये ? १६ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । देवों को 'संयत' कहना असत्य वचन है। १७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवों को 'असंयत' कहना चाहिये ? १७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्योंकि 'देव असंयत है' यह वचन निष्ठुर वचन है। १८ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या देवों को 'संयतासंयत' कहना चाहिये ? १८ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि देवों को संयतासंयत कहना असद्भूत (असत्य) वचन है । १९ प्रश्न-हे भगवन् ! तो फिर देवों को क्या कहना चाहिये ? १९ उत्तर-हे गौतम ! देवों को 'नोसंयत' कहना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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