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भगवती सूत्र - श. ५ उ. ४ छद्मस्थ और केवली का हंसना व निद्रा लेना ८०१
एज्ज वा ?
१० उत्तर - हंता, णिद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा ।
- जहा हसेज्ज वा तहा, णवरं - दरिसणावरणिज्जस्स कम्मरस उदपणं णिद्दायंति वा, पयलायंति वा, से णं केवलिस्स णत्थि । अण्णं तं चैव ।
११ प्रश्न - जीवे णं भंते! णिद्दायमाणे वा पयलायमाणे वा क कम्मप्पगडीओ बंधइ ?
११ उत्तर - गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अद्भुविहबंधए वा, एवं जाव - माणिए, पोहत्तिएस जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो ।
कठिन शब्दार्थ - णिद्दा एज्ज - निद्रा लेता है, पयलाएज्ज - खड़े हुए नींद लेना । भावार्थ - १० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य, नींद लेता है और प्रचला नामक निद्रा लेता है, अर्थात् खडे खडे नींद लेता है ?
१० उत्तर - हे गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य, नींद लेता है और खड़ा. खड़ा भी नींद लेता है ।
जिस प्रकार हंसने और उत्सुकता के विषय में छद्मस्थ और केवली मनुष्य के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर बतलाये गये हैं, उसी प्रकार निद्रा और प्रचला के विषय में छद्मस्थ और केवली मनुष्य के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर जान लेने चाहिए । परन्तु इतनी विशेषता है कि छद्मस्थ मनुष्य, दर्शनावरणीय कर्म के उदय से नींद लेता है और खड़ा खड़ा नींद लेता है, परन्तु केवली के दर्शनावरणीय कर्म नहीं है, अर्थात् केवली के दर्शनावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय हो चुका है । इसलिए वह निद्रा नहीं लेता है और प्रचला भी नहीं लेता है ।
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