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भगवती सूत्र - श. ५ उ. ४ छद्मस्थ और केवली का हंसना व निद्रा लेना
एकेंद्रिय को छोड़कर कर्म बन्ध सम्बन्धी तीन भांगे कहने चाहिए ।
विवेन - पहले के प्रकरण में छद्मस्थ और केवली के सम्बन्ध में कथन किया गया है । इस प्रकरण में उन्हीं के सम्बन्ध में कथन किया जाता है। हंसना और उत्सुक होना ( किसी चीज को लेने के लिए उतावला होता) चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से होता है । छद्मस्थ मनुष्य के चारित्र मोहनीय कर्म का उदय है, अतः वह हंसता है और उत्सुक होता है, किन्तु केवली मनुष्य, न तो हंसता है और न उत्सुक ही होता है, क्योंकि उसके चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय हो चुका है।
जीव की वक्तव्यता की तरह नरक से लेकर वैमानिक तक चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए ।
यहाँ पर यह शंका होती है कि इस सूत्र में हंसने आदि का पाठ सभी संसारी जीवों के विषय में घटाने का कहा गया है, वह कैसे घटित हो सकता है, क्योंकि पृथ्वीकाय काय आदि के जीवों में हंसना आदि कैसे घटित हो सकता है ?
समाधान- यद्यपि पृथ्वी काय अप्काय आदि के जीव वर्तमान चालू स्थिति में हँस नहीं सकते, तथापि उन्होंने अपने किन्हीं पूर्वभवों में हंसना आदि क्रियाएँ अवश्य की है, उस अपेक्षा से सूत्रोक्त पाठ सब जीवों के लिए बराबर घटित होता है ।
एक जीव की अपेक्षा से यह कहा गया है कि वह सात कर्मों को अथवा आठ कर्मों को बांधता है । जब बहुवचन सम्बन्धी सूत्र कहा जाय, तब उस में समुच्चय जीव और एकेंद्रिय को छोड़कर बाकी १९ दण्डकों में कर्म बंध सम्बन्धी तीन भंग कहने चाहिये । क्योंकि समुच्चय जीव और पृथ्वीकाय आदि एकेंद्रिय जीव सदा बहुत हैं । इसलिये उनमें एक वचन सम्बन्धी मंग सम्भावित नहीं होता । किन्तु 'बहुत जीव, सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले और बहुत जीव आठ प्रकार के कर्मों को बांधने वाले' - यह एक ही भंग सम्भवित हैं । नारक आदि में तो तीन भंग सम्भवित हैं। यथा- पहला भंग-सभी जीव सात प्रकार के कर्मों को बांधनेवाले । दूसरा भंग - बहुत जीव सात प्रकार के कर्मों को बांधने वाले और एक जीव, आठ प्रकार के कर्मों को बांधनेवाला । तीसरा भंग- बहुत जीव सात प्रकार के कर्मों को बांधनेवाले और बहुत जीव आठ प्रकार के कर्मों को बांधनेवाले ।
१० प्रश्न - छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से णिद्दाएज वा, पयला
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