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________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. ४ छद्मस्थ और केवली का हंसना व निद्रा लेना ७९९ कम्मपयडीओ बंधइ ? __९ उत्तर-गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, एवं जाव-वेमाणिए; पोहतएहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। ___ कठिन शब्दार्थ-हसेज्ज-हंसता है, उस्सुयाएज्ज-उत्सुक होता है, पोहत्तएहि-पृथक्त्त्व अर्थात् बहुवचन सम्बन्धी। भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य हंसता है और उत्सुक होता है अर्थात् किसी पदार्थ को लेने लिए उतावला होता है ? ६ उत्तर-हे गौतम ! हाँ, छद्मस्थ मनुष्य हंसता है और उत्सुक होता है। ७ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस तरह छद्मस्थ मनुष्य हंसता है और उत्सुक होता है, क्या उसी तरह केवली मनुष्य भी हंसता है और उत्सुक होता है ? ७ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् केवलज्ञानी मनुष्य न तो हंसता है और न उत्सुक होता है। ८ प्रश्न-हे भगवन् ! केवली मनुष्य न हंसता है और न उत्सुक होता है, इसका क्या कारण है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! जीव, चारित्र-मोहनीय कर्म के उदय से हंसते और उत्सुक होते हैं, किन्तु केवली भगवान् के चारित्र-मोहनीय कर्म नहीं है अर्थात चारित्र-मोहनीय कर्म का क्षय हो चुका है। इसलिए छद्मस्थ मनुष्य की तरह केवली भगवान् हंसते नहीं हैं और न उत्सुक ही होते हैं। ९ प्रश्न-हे भगवन् ! हंसता हुआ अथवा उत्सुक होता हुआ जीव, कितने प्रकार के कर्म बांधता है ? ९ उत्तर-हे गौतम ! हंसता हुआ अथवा उत्सुक होता हुआ जीव, सात प्रकार के कर्मों को बांधता है अथवा आठ प्रकार के कर्मों को बांधता है। इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों में कहना चाहिए। जब उपरोक्त प्रश्न बहुत जीवों की अपेक्षा पूछा जाय, तब उसके उत्तर में समुच्चय जीव और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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