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________________ ७८० भगवती सूत्र-श. ५ उ. २ वायु का स्वरूप १३ उत्तर-हे गौतम ! जब वायकुमार देव और वायकुमार देवियाँ अपने लिये, दूसरों के लिये अथवा उभय के लिये (अपने और दूसरे दोनों के लिए) वायुकाय की उदीरणा करते हैं, तब ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं। १४ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या वायुकाय, वायुकाय को ही श्वास रूप में ग्रहण करती है, और निःश्वास रूप में छोड़ती है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! इस सम्बन्ध में स्कन्दक परिव्राजक के उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए, यावत् (१) अनेक लाख बार मरकर, (२) स्पृष्ट होकर, (३) मरती है और (४) शरीर सहित निकलती है । इस प्रकार चार आलापक कहने चाहिये। विवेचन-वायुकाय के बहने में वायुकाय के तीन रूप बनते हैं। यह बात यहां दूसरी तरह से तीन सूत्रों द्वारा बतलाई गई है । शङ्का- अस्थि णं भंते ! ईसिंपुरेवाया' इत्यादि सूत्र तो पहले आ चुका है। फिर उसे यहां पुनः क्यों बतलाया गया ? समाधान-चालू प्रकरण में यह सूत्र प्रस्तावना के रूप में रखा गया है । दूसरीबार बतलाने का यही कारण है । इसलिए इसमें पुनरुक्ति दोष नहीं है। .. यहां ईषत्पुरोवान आदि के बहने के तीन कारणों का निर्देश किया गया है । अर्थात् ईषत्पुरोवात आदि वायु, अपनी स्वाभाविक गति से बहती है, उत्तर-वैक्रिय करके बहती है और वायुकुमार आदि द्वारा की हुई उदीरणा से बहती है। वायुकाय का मूल शरीर तो औदारिक हैं और वैक्रिय शरीर इसका उत्तर शरीर है । इस उत्तर शरीर पूर्वक जो गति होती है उसे 'उत्तरक्रिय या उत्तर-वैक्रिय' कहते हैं । शङ्का-वायुकाय के बहने के तीन कारणों का निर्देश एक ही सूत्र द्वारा किया जा . सकता है, फिर यहाँ अलग अलग तीन सूत्र क्यों कहे गये हैं ? समाधान-सूत्र की गति विचित्र होने से यहां पर तीन सूत्र कहे गये हैं। दूसरी वाचना में तो इन तीन कारणों को भिन्न भिन्न वायु के बहने में कारण बतलाया गया है । यथा-ईषत्पुरोवात. पथ्यवात और मन्दवात, ये तीन स्वभाव से बहती है। ईषत्पुरोवात, पथ्य-वात और महावात, इन तीनों के बहने में उत्तर-वैक्रिय कारण है, और तीसरा कारण चारों वायु के बहने का है। इसलिये तीन सूत्रों का पृथक् पृथक कहना उचित है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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