SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ५ उ. २ ओदन आदि के शरीर ७८१ वायुकाय का प्रकरण होने से अब वायु के सम्बन्ध में एक दूसरी बात बताई जाती है। __ + वायुकाय, वायुकाय को ही बाह्य और आभ्यन्तर श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करती है और छोड़ती है। जिस वायु को वह श्वासोच्छवास रूप में ग्रहण करती है, वह वायु निर्जीव है । वायु काय, वायुकाय में ही अनेक लाखों बार मरकर, वायुकाय में ही उत्पन्न हो जाती है । वायुकाय, स्वकाय शस्त्र के साथ में अथवा पर-काय शस्त्र के साथ अर्थात् पर निमित्त से (पंखे आदि से उत्पन्न हुई वायु से) स्पृष्ट होकर मरण को प्राप्त होती है। किंतु बिना स्पृष्ट हुए मरण को प्राप्त नहीं होती। (यह बात सोपक्रम आयुवाले जीवों की अपेक्षा से है) वायुकाय के चार. शरीर होते हैं। जिन में से औदारिक और वक्रिय शरीर की अपेक्षा तो वह अशरीरी होकर परलोक में जाती है। तथा तेजस् और कार्मण शरीर की अपेक्षा सशरीरी परलोक में जाती है। ओदन आदि के शरीर १५ प्रश्न-अह भंते ! उदण्णे, कुम्मासे, सुरा एए णं किं सरीरा त्ति वत्तव्वं सिया ? __ १५ उत्तर-गोयमा ! उदण्णे, कुम्मासे सुराए य जे घणे दव्वे एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च वणस्सइजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया सत्थपरिणामिया अगणिज्झामिया अगणिझुसिया अगणिसेविया अगणिपरिणामिया अगणिजीवसरीरा इ वत्तव्वं सिया, सुराए य जे दवे दब्वे एए णं पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च आउजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया, जाव-अगणिकायसरीरा इ वत्तव्वं सिया । ___+ इस प्रकरण का विस्तृत विवेचन भगवती शतक २ उद्देशक १ सूत्र ८ से १२ तक स्कन्दक प्रकरण में किया गया है। इसलिये विशेष जिज्ञासुओं को प्रथम भाग पृ. ३८२ में देखना चाहिये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy