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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि
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असंख्य द्वीप और समुद्रों तक के स्थल को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण स्पृष्ट और गाढावगाढ़ कर सकता है अर्थात् इतने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है कि असंख्य द्वीप समुद्रों तक के स्थल को ठसाठस भर सकता है। हे गौतम ! उन सामानिक देवों की ऐसी शक्ति है, विषय है, विषयमात्र है, परन्तु सम्प्राप्ति द्वारा उन्होंने ऐसा कभी किया नहीं, करते नहीं और करेंगे भी नहीं।
५ प्रश्न-जइ णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो सामाणियदेवा एमहिड्ढीया, जाव-एवइयं च णं पभू विउवित्तए चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो तायत्तीसया देवा के महिड्ढीया ?
५ उत्तर-तायत्तीसया देवा जहा सामाणिया तहा णेयव्वा । लोयपाला तहेव, णवरं-संखेजा दीव-समुद्दा भाणियव्वा । (बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहि, देवीहि य आइण्णे, जाव-विउव्विस्संति वा ।) - ६ प्रश्न-जइ णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो लोगपाला देवा एमहिड्ढीया, जाव-एवइयं च णं पभू विउवित्तए, चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स, असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओ के महिड्ढीयाओ, जाव-केवइयं च णं पभू विउवित्तए ?
६ उत्तर-गोयमा ! चमरस्स णं असुरिंदस्स, असुररण्णो अग्गमहिसीओ महिड्ढीयाओ, जाव-महाणुभागाओ, ताओ णं तत्थ साणं साणं भवणाणं, साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं, साणं साणं
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