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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ. १ चमरन्द्र की ऋद्धि तए, एस णं गोयमा ! चमरस्स असुरिंदस्स, असुररण्णो एगमेगस्स सामाणियदेवस्स अयमेयारूवे विसए, विसयमेत्ते बुझ्ए, णो चेवणं सपंत्ती विव्विसुवा, विव्व वा, विव्विस वा । ५४२ कठिन शब्दार्थ - अग्ग महिसीओ – पटरानियों - महारानियों । भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी मोटी ऋद्धि वाला है यावत् इतनी विकुर्वणा कर सकता है, तो हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देवों की कितनी मोटी ऋद्धि है यावत् उनकी विकुर्वणा शक्ति कितनी है ? ४ उत्तर - हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, महा ऋद्धि वाले यावत् महाप्रभाव वाले हैं। वे अपने अपने भवनों पर, अपने अपने सामानिक देवों पर और अपनी अपनी अग्रमहिषियो ( पटरानियों) पर अधिपतिपना (सत्ताधीशपना) करते हुए यावत् दिव्य भोग भोगते हुए विचरते हैं । ये इस प्रकार की महाऋद्धि वाले हैं। इनकी विकुर्वणा करने की शक्ति इस प्रकार हैहे गौतम! विकुर्वणा करने के लिए असुरेन्द्र असुरराज चमर का एक एक सामानिक देव, वैक्रिय समुद्धात द्वारा समवहत होता है और यावत् दूसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात द्वारा समवहत होता है । हे गौतम! जैसे कोई युवा पुरुष, युवती स्त्री के हाथ को दृढ़ता के साथ पकड़ कर चलता है, तो वे दोनों संलग्न मालूम होते हैं अथवा जैसे गाडी के पहिये की धुरी में आरा संलग्न, सुसंबद्ध एवं आयुक्त होते हैं, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव, बहुत असुरकुमार देवों द्वारा तथा असुरकुमार देवियों द्वारा इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और गाढ़ावगाढ कर सकता है अर्थात् ठसाठस भर सकता है । समुद्घात करके फिर हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के एक एक .. सामानिक देव, बहुत असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा इस तिच्र्च्छा लोक के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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