SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४४ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ चमरेन्द्र की ऋद्धि महत्तरियाणं, साणं साणं परिसाणं, जाव-एमहिड्ढीयाओ, अण्णं जहा लोगपालाणं अपरिसेसं । कठिन शब्दार्थ-महत्तरियाणं--महत्तरिका-मित्ररूप । __५ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के सामानिक देव ऐसी महा ऋद्धि वाले हैं यावत् इतनी बिकुर्वणा करने में समर्थ हैं, तो हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के त्रास्त्रिशक देव कितनी मोटी ऋद्धि वाले हैं ? ५ उत्तर-हे गौतम ! जैसा सामानिक देवों के लिए कथन किया, वैसा ही त्रास्त्रिशक देवों के लिए कहना चाहिए । लोकपाल देवों के लिए भी इसी तरह कहना चाहिए। किन्तु इतना अन्तर है कि अपने द्वारा वैक्रिय किये हुए असुरकुमार देव और देवियों के रूपों से वे संख्येय द्वीप समुद्रों को भर सकते हैं। यह उनका विषय है, विषयमात्र है, परन्तु उन्होंने कभी ऐसा किया नहीं, करते नहीं और करेंगे भी नहीं। ६ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के लोकपाल ऐसी महाऋद्धि वाले हैं यावत् वे इतना वैक्रिय करने की शक्ति वाले हैं, असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषियां (पटरानी देवियाँ) कितनी बडी ऋद्धि वाली हैं यावत् विकुर्वणा करने की कितनी शक्ति है ? ६ उत्तर-हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की अग्रमहिषियाँ महाऋद्धि वाली हैं यावत् महाप्रभाव वाली हैं। वे अपने अपने भवनों पर, अपने अपने एक एक हजार सामानिक देवों पर, अपनी अपनी सखी महत्तरिका देवियों पर और अपनी अपनी परिषदाओं पर अधिपतिपना भोगती हुई विचरती हैं यावत् वे अग्रमहिषियाँ ऐसी महाऋद्धि वाली हैं । इस विषय में शेष वर्णन लोकपालों के समान कहना चाहिए। ७ प्रश्न-सेवं भंते !, सेवं भंते !! त्ति । भगवं दोच्चे गोयमे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy