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________________ भगवती सूप ----श. ३ उ. ८ देवेन्द्र ___ ७३१ । ___४ उत्तर-गोयमा ! दस देवा जाव-विहरति, तं जहा-सक्के देविंदे देवराया; सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे । ईसाणे देविंदे देवराया; सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे । एसा वत्तव्वया सव्वेसु वि कप्पेसु एए चेव भाणियब्वा । जे य इंदा ते य भाणियव्वा । -सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति । ____भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्म और ईशान देवलोक में अधिपतिपना भोगते हुए यावत् कितने देव विचरते हैं ? ४ उत्तर-हे गौतम ! उन पर अधिपतिपना भोगते हुए यावत् दस देव हैं । यथा-देवेन्द्र देवराज शक्र, सोम, यम, वरुण, वश्रमण और देवेन्द्र देवराज ईशान, सोम, यम, वैश्रमण, वरुण । यह सारी वक्तव्यता सब देवलोकों में कहनी चाहिए और जिसमें जो इन्द्र है वह कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। विवेचन-सातवें उद्देशक में देवों की वक्तव्यता कही गई हैं और इस आठवें उद्देशक में भी देवों सम्बन्धी वक्तव्यता ही कही जाती है । मूलपाठ जो दस अक्षर कहे गये हैं । वे दक्षिण भवनपति देवों के इन्द्रों के प्रथम लोकपालों के नामों के आद्यक्षर (पहला पहला अक्षर) हैं। उनके पूरे नामों को सूचित करने वाली गाथा यह है सोमे य कालवाले, चित्तप्पभ तेउ तह रूए चेव, जल तह तुरियगई य काले आवत्त पढमा उ॥ अर्थ-सोम, कालवाल, चित्र, प्रभ, तेजस्, रूप, जल, त्वरितगति, काल और आवर्त । दूसरी जगह तो ऐसा कहा गया है कि दक्षिण दिशा के लोकपालों के प्रत्येक सूत्र में जो तीसरा और चौथा कहा गया है वह उत्तर दिशा के लोकपालों में चौथा और तीसरा कहना चाहिए। सौधर्म और ईशान के सम्बन्ध में जो वक्तव्यता कही है, वैसी ही वक्तव्यता इन्द्रों के निवासवाले सब देवलोकों के विषय में कहनी चाहिए । सनत्कुमारादि इन्द्र युगलों के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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