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________________ भगवती सूत्र - श. ३ उ: ७ लोकपाल सोमदेव हजार पाँच सौ सत्तानवें ( ५०५९७ ) योजन से कुछ कम है । प्रासादों की चार परिपाटी कहनी चाहिए, शेष नहीं । ७११ सक्करस णं देविंदस्स, देवरण्णो सोमस्स महारष्णो इमे देवा आणा-उववाय-वयण- णिद्देसे चिट्टंति, तं जहा- सोमकाइया इवा, सोमदेवयकाइया इवा, विज्जुकुमारा, विज्जुकुमारीओ; अग्गिकुमारा, अग्गिकुमारीओ; वायुकुमारा, वायुकुमारीओ चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, तारारूवा - जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तन्भत्तिया, तपक्खिया, तभारिया सक्कस्स देविंदस्स, देवरण्णो सोमरस महारण्णो आणा उववाय-वयण- णिसे चिट्ठेति । , कठिन शब्दार्थ - तब्भत्तिया उसके भक्त, तपक्खिया - उसके पक्ष के तब्भारियाउसके अधिकार में । Jain Education International भावार्थ- देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की आज्ञा में, उपपात ( समीपता ) में, कहने में और निर्देश में ये देव रहते है, यथा-सोमकायिक, सोमदेवकायिक, विद्युत्कुमार, विद्युत्कुमारियाँ, अग्निकुमार, अग्निकुमारियाँ, वायुकुमार, वायुकुमारियाँ, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारारूप और इसी प्रकार के दूसरे भी सब उसके भक्त देव, उसके पक्ष के देव, और उसकी अधीनता में रहने वाले, ये सब देव उसकी आज्ञा में, उपपात में, कहने में और निर्देश में रहते हैं । जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पजंति, तं जहा - गहदंडा इवा, गहमुसलाइ वा, गहगज्जिया इ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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