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________________ ७१० भगवती सूत्र - श. ३ उ. ७ लोकपाल सोमदेव यम, वरुण और वैश्रमण । २ प्रश्न - हे भगवन् ! इन चार लोकपालों के कितने विमान कहे गये हैं ? २ उत्तर - हे गौतम ! इन चार लोकपालों के चार विमान कहे गये हैं । यथा - सन्ध्याप्रभ, वरशिष्ट, स्वयंज्वल और वल्गु । ३ प्रश्न - हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शत्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नाम का महोत्वमान कहो है ? ३ उत्तर - हे गौतम! जम्बूद्वीप नामवाले द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारागण आते हैं। उनसे बहुत योजन ऊपर यावत् पाँच अवतंसक है । यथा - अशोकावतंसक, सप्तपर्णावतंसक, चंपकावतंसक, चूतावतंसक और बीच में सौधर्मावतंसक है । उस सौधर्मावतंसक महाविमान के पूर्व में, सौधर्म कल्प में असंख्य योजन दूर जाने के बाद वहाँ पर देवेन्द्र देवराज शत्र के लोकपाल सोम नामक महाराज का सन्ध्याप्रभ नाम का महाविमान आता है । उसकी लम्बाई चौड़ाई साढे बारह लाख योजन की है । उसका परिक्षेप ( परिधि ) उनचालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस (३९५२८४८ ) योजन से कुछ अधिक है । इस विषय सूर्याभ देव के विमान की वक्तव्यता की तरह सारी वक्तव्यता अभिषेक तक कहनी चाहिए, इतना फर्क है कि यहाँ सूर्याभ देव के स्थान पर 'सोमदेव' कहना चाहिए। सन्ध्याप्रभ महाविमान के सपक्ष प्रतिदेश अर्थात् ठीक बराबर नीचे असंख्य योजन जाने पर देवेन्द्र · देवराज शक्र के लोकपाल सोम महाराज की सोमा नाम की राजधानी है । उस राजधानी की लम्बाई और चौड़ाई एक लाख योजन की है। वह राजधानी जम्बूद्वीप जितनी है। इस राजधानी के किले आदि का परिमाण वैमानिक देवों के किले आदि के परिमाण से आधा कहना चाहिए। इस तरह यावत् घर के पीठबन्ध तक कहना चाहिए। घर के पीठबन्ध का आयाम और विष्कम्भ अर्थात् लम्बाई चौड़ाई सोलह हजार योजन है । उसका परिक्षेप (परिधि ) पचास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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