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________________ ६८४ भगवती सूत्र-श. ३ उ.४ प्रमादी मनुष्य विकुर्वणा करते हैं M जाव-फासिंदियत्ताए; अट्ठि अट्ठिमिंज-केस-मंसु-रोमणहत्ताए सुक्कताए, सोणियत्ताए । अमाई णं लूहं पाण-भोयणं भोचा भोचा णो वामेइ, तस्स णं तेणं लूहेणं पाण-भोयणेणं अद्वि-अद्विमिंजा पयणुभवंति, बहले मंस-सोणिए; जे वि य से अहाबायरा पोग्गला ते वि य से परिणमंति, तं जहा-उच्चारत्ताए पासवणत्ताए, जावसोणियत्ताए, से तेणटेणं जाव-णो अमाई विउव्वइ । -माई णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ, णत्थि तस्स आराहणा । अमाई णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकंते कालं करेइ, अत्थि तस्स आराहणा। -सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति । । ॥ चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-पणीयं-प्रणीत-घृतादि रस से भरपूर, वामेइ-वमन करता है, बहली भवंति-धन-दृढ़ होती है, पयणुए-पतले, अहाबायरा-यथा बादर, सुक्कत्ताए-शुक्र-वीर्य के रूप में, लुहेणं-रुक्ष-लूखा, अणालोइयपडिक्कते-आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना, आराहणा-आराधना। २३ प्रश्न- हे भगवन् ! क्या मायो (प्रमत) मनुष्य विकुर्वणा करता है ? या अमायी (अप्रमत्त) विकुर्वणा करता है ? २३ उत्तर-हे गौतम ! मायो (प्रमत्त) मनुष्य विकुर्वणा करता है, किंतु अमायी (अप्रमत्त) मनुष्य विकुर्वणा नहीं करता। ___२४ प्रश्न-हे भगवन् ! मायी मनुष्य विकुर्वणा करता है और अमायो मनुष्य विकुर्वणा नहीं करता, इसका क्या कारण है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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