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________________ ६८२ भगवती सूत्र - अ. ३ उ. ४ अनगार की पर्वत लाँघने की शक्ति २१ उत्तर - हंता, पभू । २२ प्रश्न - अणगारे णं भंते! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता जावइयाई रायगिहे णयरे रुवाई, एवइयाई विउब्वित्ता वेभारं पव्वयं अतो अणुष्पविसित्ता प्रभू समं वा विसमं करेत्तए, विसमं वा समं करेत्तर ? २२ उत्तर - गोयमा ! णो इणट्टे समट्टे, एवं चेव बिईओ वि आलावगो, णवरं - परियाइत्ता पभू । कठिन शब्दार्थ - पल्लंघेत्तए - प्रलंघना - विशेष रूप से अथवा बारबार लांघना, अपरियाइत्ता - लिये बिना ही । भावार्थ - २० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना वैभार पर्वत को उल्लंघ सकता है और प्रलंघ सकता है ? २० उत्तर- - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । २१ प्रश्न न - हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके वैमार पर्वत को उल्लंघ सकता है और प्रलंघ सकता है ? २१ उत्तर - हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है । २२ प्रश्न-- - हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ही राजगृह नगर में जितने रूप हैं, उतने रूपों की विकुर्वणा करके और वैभार पर्वत में प्रवेश करके, सम पर्वत को विषम कर सकता है ? अथवा विषम पर्वत को सम कर सकता है ? २२ उत्तर - हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् वह बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ऐसा नहीं कर सकता है । इसी तरह दूसरा आलापक भी कहना चाहिये, किन्तु इतनी विशेषता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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