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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. ४ अनगार की पर्वत लांघने की शक्ति · ६८१ सव्वाहि लेसाहिं पढमे समयम्मि संपरिणयाहि । नो कस्स वि उववाओ परे भवे अस्थि जीवस्स ।। सव्वाहि लेसाहिं चरिमे समयम्मि संपरिणयाहि । म वि कस्स वि उववाओ परे भवे अत्थि जीवस्स ॥ अंतमुत्तम्मि गये अंतमुहुत्तम्मि सेसए चेव । लेसाहिं परिणयाहिं जीवा गच्छंति परलोयं ॥ अर्थ-जिस समय लेश्या के परिणाम का प्रथम समय होता है, उस समय किसी भी जीव का परभव में उपपात (जन्म) नहीं होता और जिस समय लेश्या के परिणाम का अन्तिम समय होता है, उस समय भी किसी भी जीव का परभव में उपपात नहीं होता। लेश्या के परिणाम को अन्तर्मुहूर्त बीत जाने पर और अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर-जीव, परलोक में जाते हैं। मूल में नारक सम्बन्धी सूत्र कह कर फिर ‘एवं' शब्द से चौबीस दण्डकों में से जो दण्डक शेष रहे हैं, उन सब का अतिदेश हो जाता है, तथापि ज्योतिषी और वैमानिक देवों के लिये जो अलग सूत्र कहा गया है, इसका कारण यह है कि ज्योतिषी और वैमानिक देवों में प्रशस्त (उत्तम) लेश्या होती है । इस बात को दिखलाने के लिये अलग सूत्र कहा गया है । अथवा विचित्रत्वात् सूत्रगतेः' अर्थात् सूत्र की गति विचित्र होती है। अतः ज्योतिषी और वैमानिक देवों का अलग कथन किया गया है। अनगार को पर्वत लाँघने को शक्ति २० प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा, पल्लंघेत्तए वा ? २० उत्तर-गोयमा ! णो इणटे समटे ।। २१ प्रश्न-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू वेभार पव्वयं उल्लंघेत्तए वा, पल्लंघेत्तए वा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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