SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ चमरेन्द्र की चिन्ता और वीर वन्दन ६४७ कर आर्तध्यान करता हुआ असुरेन्द्र असुरराज चमर, चमरचञ्चा नामक राजधानी में, सुधर्मा सभा में, चमर नामक सिंहासन पर बैठ कर विचार करता है। इसके बाद नष्ट मानसिक संकल्प वाले यावत् विचार में पड़े हुए असुरेन्द्र असुरराज चमर को देख कर सामानिक सभा में उत्पन्न हुए देवों ने हाथ जोड़ कर इस प्रकार कहा कि-'हे देवानुप्रिय ! आज आप इस तरह आर्तध्यान करते हुए क्या विचार करते हैं ?' तब असुरेन्द्र असुरराज चमर ने उन सामानिक सभा में उत्पन्न हुए देवों से इस प्रकार कहा कि-'हे देवानुप्रियों ! मैंने अपने आप अकेले ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी का आश्रय लेकर, देवेन्द्र देवराज शक को उसकी शोभा से भ्रष्ट करने का विचार किया था। तदनुसार मै सुधर्मा सभा में गया था । तब शकेन्द्र ने अत्यन्त कुपित होकर मुझे मारने के लिए मेरे पीछे वज्र फेंका। परन्तु हे देवानुप्रियों ! श्रमण भगवान महावीर स्वामी का भला हो कि जिनके प्रभाव से में अक्लिष्ट रहा हूँ, अव्यथित (व्यथा-पीड़ा रहित) रहा हूँ तथा परिताप पाये बिना यहां आया हूँ, यहाँ समवसत हुआ हूँ, यहाँ सम्प्राप्त हुआ हूँ, यहाँ उपसम्पन्न होकर विचरता हूँ। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामो, णमंसामो जाव-पज्जुवासामो ति कटु चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहिं, जाव सब्विड्ढीए, जाव-जेणेव असोगवरपायवे, जेणेव ममं अंतिम तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं जाव-णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! मए तुम्भं णीसाए सक्के देविंद देवराया सयमेव अच्चासाइए, जाव-तं भदं णं भवतु देवाणुप्पियाणं जस्स म्हि पभावेणं अकिटे जाव विहरामि, तं खामेमि णं देवाणुप्पिया ! जाव उत्तरपुरथिमं दिसीभागं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy