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________________ भगवती सूत्र-श. ३ उ. २ इन्द्र की ऊर्ध्वादि गति ६४३ २९ प्रश्न-हे भगवन् ! वज्र, वज्राधिपति (शकेन्द्र) और चमरेन्द्र, इन सब का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल, इन दोनों कालों में से कौनसा काल किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? २९ उत्तर-हे गौतम ! शकेन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों तुल्य हैं और सब से थोडे हैं । शक्रेन्द्र का नीचे जाने का काल और वज्र का ऊपर जाने का काल, ये दोनों काल तुल्य हैं और संख्येय गुणा हैं । चमरेन्द्र का ऊपर जाने का काल और वज्र का नीचे जाने का काल, ये दोनों काल परस्पर तुल्य हैं और विशेषाधिक हैं। विवेचन- यहाँ यह देखा जाता है कि कोई पुरुष पत्थर या गेंद आदि को फेंक कर जाते हुए उसको पीछे जाकर नहीं पकड़ सकता है, तो क्या देवों में भी यही बात है ? अथवा फेंके हुए पदार्थ के पीछे जाकर देव उसको पकड़ सकते हैं ? शकेन्द्र ने अपने फेंके हुए वज्र को उसके पीछ. जाकर पकड़ लिया, तो वह चमरेन्द्र को क्यों नहीं पकड़ सका ? इत्यादि शंकाओं से प्रेरित होकर ये प्रश्नोत्तर किये गये हैं ? शकेन्द्र को ऊँचा जाने में सब से थोड़ा काल लगता है. क्योंकि ऊँचा जाने में उसकी गति अति शीघ्र होती है । 'ऊर्ध्वलोक कण्डक' शब्द का अर्थ यह है-ऊर्ध्वलोक अर्थात् ऊपर का क्षेत्र । कण्डक का अर्थ है-काल-विभाग । शकेन्द्र का अधोलोक कण्डक संख्यात गुणा है अर्थात् ऊर्ध्वलोक कण्डक की अपेक्षा अधोलोक कण्डक दुगुना है, क्योंकि नीचे के क्षेत्र में जाने में शकेन्द्र की गति मन्द होती है । शकेन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल बराबर है। चमरेन्द्र एक समय में जितना क्षेत्र नीचे जाता है, उतना नीचा क्षेत्र जाने में शक्रेन्द्र को दो समय लगते हैं । शकेन्द्र एक समय में सब से थोड़ा क्षेत्र नीचे जाता है, क्योंकि नीचे जाने में उसकी गति मन्द होती है । कल्पना कीजिये-शकेन्द्र एक समय में एक योजन नीचे जाता है, डेढ़ योजन तिर्छा जाता है, और ऊपर दो योजन जाता है। शंका-सूत्र में तो सिर्फ संख्यात भाग लिखा है, परन्तु कोई नियमित भाग नहीं बतलाया गया है, तो यहां नियमितता किस प्रकार बतलाई गई है। समाधान-"चमरेन्द्र" एक समय में जितना क्षेत्र नीचे जाता है, उतना ही क्षेत्र नीचे जाने में शकेन्द्र को दो समय लगते हैं। तथा शक्रेन्द्र का ऊपर जाने का काल और चमरेन्द्र Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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